: २ : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
* मारा ईष्टदेवने याद करवा हुं हंमेशा जिनमंदिरे जईश *
९. राग करतां करता सम्यग्दर्शन थाय एम जे माने तेणे सम्यग्दर्शनने
रागनुं कार्य मान्युं,–पण जेनामां सम्यग्दर्शनादि कार्यरूप थवानी
‘कर्मशक्ति ’ छे एवा आत्माने तेणे मान्यो नहि; एटले तेने निर्मळ
कार्य थतुं नथी.
१०. छ कारकोरूप जे स्वभावसामर्थ्य, तेने अनुसरीने निर्मळ परिणति थाय
–ते आत्मानी क्रिया छे. ज्यां स्वभावने अनुसर्यो त्यां छ कारकरूपे स्वयं
थईने सर्वज्ञता तरफ चाल्यो...ने विभावथी विमुख थयो. –एनुं नाम
साधकदशा....एनुं नाम धर्म....ने एनुं नाम मोक्षमार्ग.
११. कोई कहे: “आत्मा आवी शक्तिवाळो छे तो ते देखातो केम नथी?’
–अरे भाई! तुं जुए पर तरफ, ने कहे के आत्मा देखातो नथी, –पण
क्यांथी देखाय? आत्मा तरफ जो तो आत्मा देखाय ने! पर तरफ जोये
आत्मा क््यांथी देखाय? माटे स्वसन्मुख था...तो अनंतशक्तिवाळो
आत्मा तने स्वानुभवमां आवशे.
१२. घणा जीवो ‘नमो अरिहंताणं’ एम कहीने सर्वज्ञ भगवानने नमस्कार
करे छे, –पण नमस्कार करनारो पोते, ज्यांसुधी पोतामां पण सर्वज्ञ
जेवी अनंत शक्ति छे–तेनो विश्वास करीने स्वशक्तिसन्मुख न नमे
त्यांसुधी सर्वज्ञदेवने पण तेना परमार्थनमस्कार पहोंचता नथी.
स्वशक्तिनी सन्मुख थतां ज सर्वज्ञने परमार्थ नमस्कार पहोंची
जाय छे.
१३. जैनशासननी आ अद्भुतता छे के सर्वज्ञ सामे बहारमां जोया वगर
पण सर्वज्ञने परमार्थनमस्कार थई जाय छे. वाह रे वाह आत्मसन्मुखी
मार्ग!
१४. सर्वज्ञ थवानी शक्ति मारामां छे, –एम पोताना पूरा गुणोने जे नथी
स्वीकारतो, ते सर्वज्ञ भगवानना पूरा गुणोने पण क््यांथी ओळखशे?
–ने ओळख्या वगर साचा नमस्कार क््यांथी थाय?
१५. अहा, आचार्यदेवे आत्मानी स्वाधीन शक्तिओ ओळखावीने अद्भुत
प्रभुता बतावी छे....जेने ओळखतां पोतानी स्वतंत्र प्रभुताथी आत्मा
एवो शोभी ऊठे के तेना अखंडप्रतापने कोई हणी शके नहीं.