Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ३ :
* रत्नत्रयवंत मुनिभगवंत...एने ओळखता आव्या भवना अंत *
१६. छए कारकोरूपे थवानी शक्ति आत्मामां छे. स्वसन्मुख थईने
आत्माए पोतामांथी जे सम्यग्दर्शनादि निर्मळभाव प्राप्त कर्यो, ते
भावमय आत्मा थाय–एवी तेनी ‘कर्मशक्ति’ छे. दरेक आत्मामां
त्रिकाळ आवी शक्ति रहेली छे.
१७. ‘मारे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपी कार्य करवुं छे,–पण ते कार्य क््यांथी
आवतुं हशे? ’ –तो आचार्यदेव कहे छे के भाई, क््यांय बहारथी ते कार्य
नथी आवतुं, –पण तारा आत्मामां ज एवी ताकात छे के पोते स्वयं ते
कार्यरूप परिणमी जाय. पण क््यारे? –के स्वसन्मुख थाय त्यारे.
१८. धर्मरूपी जे निर्मळ कर्म–ते रूपे आत्मा स्वयं थाय छे; शरीर के राग ते
कोई धर्मरूपे थता नथी. निजशक्तिमांथी निर्मळभाव प्राप्त करीने
आत्मा स्वयं ते रूपे थाय छे,–एवी तेनी कर्मशक्ति छे.
१९. द्रव्यकर्म ते पर छे; भावकर्म ते विभाव छे; सम्यग्दर्शनादि
निर्मळपर्यायरूप कर्म ते स्वभावनुं कार्य छे. अने एवी ‘कर्मशक्ति’ ते
त्रिकाळ शुद्धस्वभावे छे. ते शुद्धस्वभावने ओळखतां वर्तमान
निर्मळपर्यायरूप कर्म प्रगटे छे, ने रागादि भावकर्म तथा द्रव्यकर्मनो
संबंध छूटी जाय छे.
–एनुं नाम धर्म! ने ए ज आत्मानुं कर्म!–ए सिवाय कोई बीजुं कर्म
(–कार्य) ते खरेखर आत्मानुं नथी.
२०. जेमां जे तन्मय होय ते तेनुं कार्य कहेवाय.
* शरीर–कर्म–भाषा वगेरे जडनुं कर्म छे, केमके तेमां ते तन्मय छे.
* रागादि विकारीभाव ते मिथ्याद्रष्टिनुं कर्म छे, केमके तेमां ते तन्मय
छे.
* समकितीधर्मात्मानुं कर्म तो निर्मळ श्रद्धा–ज्ञान–आनंदरूप छे,
केमके ते तेमां तन्मय छे.
२१. शुं राग ते धर्मीनुं कार्य छे? –ना; केमके तेमां ते तन्मय नथी. शुं आठकर्म
ते जीवनुं कार्य छे? –ना; केमके तेमां ते तन्मय नथी. कर्ता जेमां
तन्मयपणे वर्ते ते तेनुं कार्य कहेवाय.