Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ४: आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
अहो उत्तम क्षमाना आराधक संतो! तमने नमस्कार छे...नमस्कार छे.
२२. ‘कर्तानुं ईष्ट ते कर्म ” –धर्मीजीव रागने ईष्ट बनावतो नथी, तेथी ते
तेनुं कर्म नथी. ते तो स्वभावने ज ईष्ट बनावीने तेना आश्रये निर्मळ
कार्यरूपे स्वयं परिणमे छे, ते ज तेनुं कर्म छे.
२३. अहीं तो स्वभावशक्ति–सन्मुख थयेलो आत्मा पोताना छए कारकोनी
स्वाधीनताथी निर्मळभावोरूपे ज परिणमे छे, तेनी वात छे. केमके आ
तो ‘शक्ति’ नी वात छे, शक्तिमां वळी ‘अशक्ति’ (–विभाव) केम
होय? स्वभावमां विभाव केम होय?
२४. जडकर्म अने विकाररूप भावकर्म ए बंनेथी पार एवी आ ‘कर्मशक्ति’
छे, –के जे शक्तिने लीधे आत्मा पोते पोताना सम्यग्दर्शनादि कार्यरूपे
परिणमे छे.
२५. प्रभुतारूपे, आनंदरूपे, सर्वज्ञतारूपे, स्वच्छतारूपे–एम सर्व शक्तिना
निर्मळ कार्यरूपे स्वयं परिणमवानी आत्मानी शक्ति छे. कोई बीजामां
(रागादिमां के देहनी क्रियामां) एवी ताकात नथी के प्रभुतारूपे के
आनंद वगेरे कार्यरूपे परिणमे.
२६. वाह रे वाह वीरप्रभु! आपनुं शासन पराधीनवृत्ति छोडावे छे,
बहारमां भटकती व्यग्रबुद्धि छोडावे छे, ने स्वाधीन–चैतन्यवृत्तिथी
परम सुख पमाडे छे. आपनुं शासन ज परम ईष्ट छे.
२७. जे आवी शक्तिवाळा आत्माने प्रतीतमां लईने तेनी सन्मुख थाय तेने
पोताना स्वभावमांथी ज बधा गुणोनुं निर्मळकार्य प्रगटे; सम्यग्दर्शन
प्रगटे, सम्यग्ज्ञान प्रगटे, सम्यक्चारित्र प्रगटे, सुख प्रगटे, प्रभुता
प्रगटे, स्वच्छता प्रगटे. –एम अनंतागुणोना निर्मळ कार्यरूपे आत्मा
स्वयं परिणमे, एटले परम ईष्टपदनी प्राप्ति थाय.
२८. अहा! आवो महिमावंत जे स्वभाव, तेने न मानतां ऊंधी रीते माने
तो ते उत्तम स्वभावनो अनादर करे छे, तेथी ते स्वभावनी उर्ध्वतारूप
सिद्धपदमां केम जाय? स्वभावनो आदर करीने तेनो आश्रय करे तो
जीवने ऊर्ध्व परिणमन थईने सिद्धदशारूप कार्य थाय. (अनुसंधान
पानुं ४९)