Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 83

background image
: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ५ :
* चेतनभाव ज साचुं जीवन छे...देहनो संयोग ए जीवन नथी.
महावीरना मार्गने सेवो ने महानसुखने पामो.
अत्यारे भगवानना मोक्षना अढीहजार वर्षनो मंगल उत्सव चाले छे.
जेम वडीलो मंगल प्रसंगे आशीर्वाद आपे छे के तमे सुखी थाओ! तेम
आनंदरसने पीनारा वीतरागी–वडीलो मोक्षने साधवाना मंगल प्रसंगे
आशीर्वाद आपे छे के हे भव्य! तुं ज्ञानचेतनारूप थईने सादिअनंतकाळ तारा
चैतन्यसुखने भोगव! तारा सुखस्वभावने ओळखीने तुं सुखी था–एवो
सुखी था के फरीने अनंतकाळमां कदी दुःख आवे नहि.
आत्मानुं अतीन्द्रियज्ञान ते एकांतसुख छे. ज्ञानस्वभाव ज्यां छे त्यां
सुखस्वभाव पण छे ज; एटले गुणभेद न पाडो तो जे ज्ञान छे ते ज सुख छे.
जे अतीन्द्रियज्ञानरूपे परिणमेलो आत्मा ते पोते ज अतीन्द्रियसुखरूप छे.
आत्मामां ज्ञानपरिणमननी साथे सुखपरिणमन पण भेगुं ज छे. सुख
वगरनुं ज्ञान, के ज्ञान वगरनुं सुख होतुं नथी.
कोई कहे के अमने आत्मानुं ज्ञान नथी पण अमे सुखी छीए, –तो
अतीन्द्रियज्ञान वगरनुं तेनुं सुख ते साचुं सुख नथी, तेणे मात्र
बाह्यविषयोमां सुखनी कल्पना करी छे, ने ते कल्पना खोटी छे. –विषयोनी
आकुळतामां सुख केवुं ? सुख तो अतीन्द्रियज्ञानमां छे; ज्ञान वगर सुख होय
नहि.
तेमज कोई कहे छे के अमने ज्ञान घणुं छे पण सुख नथी, –तो तेणे पण
मात्र ईन्द्रियज्ञानने ज ज्ञान मान्युं छे ते साचुं ज्ञान नथी. ज्ञान तो आकुळता
वगरनुं सुखस्वरूप होय. सुखना वेदन वगरनुं ज्ञान केवुं? –ए ज्ञान नथी पण
अज्ञान छे.
आ रीते ज्ञान ने सुख–ए बंने आत्मानो स्वभाव छे प्रभो! तारुं ज्ञान
ने तारुं सुख बंने अचिंत्य, ईन्द्रियातीत, अद्भुत छे; तेने ओळखनारुं ज्ञान
ईन्द्रियोथी पार थईने अतीन्द्रिय–महान ज्ञानसामान्यमां झुकीने तन्मय थाय
छे, अने त्यारे पोतामां ज तेने महान सुखनो अनुभव थाय छे. अहो, आवुं
अतीन्द्रियज्ञान ने सुख तो मारो स्वभाव ज छे; हुं मारा स्वभावथी ज आवा
महान ज्ञान ने सुखरूपे थाउं छुं; तेमां जगतना बीजा कोईनी अपेक्षा मने
नथी. अरे, सुखमां तन्मय