Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
स्वानुभूति सहित अवतरेला भगवान महावीरे जगतने स्वानुभूतिनो मार्ग बताव्यो
थयेली मारी ज्ञानचेतनाने ज्यां राग साथेय संबंध नथी त्यां बहारमां बीजा
कोई साथे संबंध केवो? –आ रीते धर्मीजीव पोतानी ज्ञानचेतनामां कोईपण
परभावने भेळवतो नथी; शुद्धज्ञानउपयोगरूपे परिणमतो–परिणमतो ते
मोक्षना महान आनंदने साधे छे.
–आ छे मोक्षनो मंगल उत्सव. –आ ज छे वीरप्रभुनो मुक्तिमार्ग.
परमात्मा तेडावे छे....ने संतो आनंदित थाय छे
जाणे के साक्षात् परमात्माए बोलाव्या होय ने तेमने मळवा माटे जता
होय–तेमां केटलो आह्लाद होय!! तेम स्वभावनी भावनामां साधकने परम
आह्लाद छे. एक साधारण राजा मळवा माटे तेडावे तोय लोको केवा खुशी
थाय छे? त्यारे अहीं तो अंदरमां भगवान भेटवा बोलावे छे के: आवो
आवो! आ आनंदमय चैतन्यधाममां आवो! आवा चैतन्यना अनुभवमां
एकलो आनंदनो आह्लाद ज भर्यो छे. वाह! भगवानना तेडानी आ वात
सांभळतां पण श्रोताओ कोई अनेरो उल्लास अनुभवे छे.
शुद्ध आनंदस्वभावनो जे खरेखरो उल्लास ने उमंग आववो जोईए, ते
उल्लास अज्ञानीने नथी आवतो तेथी ते बीजे अटकी जाय छे; जो खरो
उल्लास अने उमंग आवे तो अनुभव थया विना रहे नहि. चैतन्यभगवान
आनंदामृतनो वेलो छे. आवी अद्भुत पोतानी स्ववस्तु प्रत्ये असंख्यप्रदेशो
उल्लसे त्यां परिणति विभावथी पाछी फरी जाय छे, स्वानुभव थाय छे; ते
स्वानुभवमां तेने परमात्मानी प्राप्ति छे.–आवा स्वानुभवनुं नाम
परमात्मानी स्तुति छे. चैतन्यना अनुभवना महा सामर्थ्यवडे मोहनो क्षय
करी नांखे छे, ते परमात्मानी उत्कृष्ट स्तुति छे; अल्पकाळमां ते स्वयं
परमात्मा थाय छे. ते साधकने परमात्माना तेडा आवी गया छे.
निर्विकल्पध्यानवडे साक्षात् परमात्मा साथे तेनुं मिलन थाय छे. अहा,
भगवानना मिलनना आनंदनी शी वात!
(गुरुदेवना प्रवचनमांथी)