: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ७ :
अहो सर्वज्ञ महावीर! आप मोक्षमार्गना नेता छो....विश्वना ज्ञाता छो.
नानकडा बालतीर्थंकर वर्द्धमानकुंवर अंतरमां तो चैतन्यनी
अनुभूतिना आनंदझुले झूलता ’ ता....बहारमां त्रिशलामाता एमने
दिव्य पारणे झुलावता ’ ता; ए वीरकुंवरने देखीदेखीने एनुं हैयुं केवुं ठरतुं
हतुं! ने माता–पुत्र आनंदथी केवी अवनवी वातुं करता हता! तेनो नमुनो
भगवानना जन्मनी चैत्र सुद तेरसना प्रसंगे अहीं रजु थाय छे...माता–
पुत्रनी अनेरी चर्चाथी सौने घणो आनंद थशे. (ब्र. ह. जैन)
• माताजी बेठा छे, त्यां पारणामांथी मंगलवाजां जेवो मधुर अवाज
संभळाय छे–मा...ओ...मा!
• माता आश्चर्यथी जवाब आपे छे: हां, बेटा वर्द्धमान! बोलिये.
• मा, शुद्धात्मतत्त्वनो महिमा केवो अगाध छे! तेनी तने खबर छे?
•
अगाध महिमा में जाणी लीधो.
• आत्मानो केवो महिमा जाण्यो! मा, मने कहो.
• बेटा, ज्यारथी अहीं आकाशमांथी रत्नवृष्टि थवा मांडी, ज्यारथी में
दिव्य १६ स्वप्नो देख्या, ने ते स्वप्नना अद्भुत फळ जाण्या त्यारथी
मने थयुं के अहा, जेनां पुण्यनो आवो आश्चर्यकारी प्रभाव....ते
आत्मानी पवित्रतानी शी वात! एवो आराधक आत्मा मारा उदरमां
बिराजी रह्यो छे. –एम अद्भुत महिमाथी आत्माना आराधकभावनो
विचार करतां कोई अचिंत्य आनंदसहित शुद्धात्मतत्त्व मने भास्युं.
बेटा महावीर! ए बधो तारो ज प्रताप छे.
• अहो माता! तीर्थंकरनी माता थवानुं महाभाग्य तने मळ्युं; तुं
जगतनी माता कहेवाणी. चैतन्यना अद्भुत महिमाने जाणनारी हे
माता! तुं पण जरूर मोक्षगामी छो.