: ८ : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
भगवान महावीरनो ईष्ट उपदेश भेदज्ञानवडे सर्वत्र वीतरागता ज
करावे छे.
• बेटा वर्द्धमान! तारी वात सत्य छे. स्वर्गेथी तारुं आगमन थयुं त्यारथी
अंतर अने बाह्य वैभव वृद्धिगत थवा लाग्यो छे....मारा अंतरमां आनंदनी
अपूर्व स्फुरणा थवा लागी छे....मने तारा आत्मानो स्पर्श थयो त्यारथी
आराधकभाव शरू थई गयो छे, ने एक भवे हुं पण तारी जेम मोक्षने
साधीश.
• अहो, धन्य माता! मारी माता तो आवी ज शोभे. माता, तारी वात
सांभळीने मने आनंद थाय छे. हुं आ भवमां ज मोक्षने साधवा अवतर्यो
छुं, तो मारी माता पण मोक्षने साधनारी ज होय ने!
बेटा, तुं तो आखा जगतने मोक्षमार्ग देखाडनार छो; तारा प्रतापे तो जगतना
भव्य जीवो आत्माने जाणशे, ने मोक्षमार्गने पामशे. –तो हुं तारी माता केम
बाकी रहुं? हुं पण जरूर मोक्षमार्गे आवीश. बेटा, तुं भले आखा जगतनो
नाथ.....पण मारो तो पुत्र! तने आशीर्वाद आपवानो तो मारो हक्क छे.
वाह माता! तारुं हेत अपार छे...माता तरीके तुं पूज्य छो....तारुं वात्सल्य
जगतमां अजोड छे.–
माता मारी मोक्षसाधिका धन्य धन्य छे तुजने.....
तुज हैयानी मीठी आशीष वहाली लागे मुजने....
माता! दरशन तारा रे...जगतने आनंद करनारा...
बेटा, तारो अद्भुत महिमा सम्यक् हीरले शोभे...
तारा दर्शन करतां भव्यो, मोहनां बंधन तोडे....
बेटा! जन्म तुमारो रे जगने आनंद देनारो....
माता! तारी वाणी मीठी, जाणे फूलडां खरतां....
तारा हईडे हेत–फूवारा झरमर–झरमर झरतां....
माता! दरशन तारा रे....जगतने आनंद करनारा...
(वाह बेटा! तारी वाणी तो अद्भुत छे
ने भव्य जीवोने मोक्षनो मार्ग देखाडनार छे.)