Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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तारी वाणी सुणतां भव्यो, मुक्तिपंथे दोडे...
चेतनरसनो स्वाद चाखे त्यां राजपाट सब छोडे...
बेटा! जन्म तुमारो रे, जगतने मंगलकारी रे...
जागे भावना माता मुजने क्यारे बनुं वीरागी...
बंधन तोडी रागतणां सौ बनुं परिग्रह त्यागी...
माता! दरशन तारा रे जगतने आनंद करनारा...
बेटा, तुं तो बे ज वरसनो, पण गंभीरता भारी,
गृहवासी पण तुं तो उदासी, दशा मोहथी न्यारी...
बेटा! जन्म तुमारो रे...जगतने आनंद देनारो...
माता! तुं तो छेल्ली माता, मात बीजी नहि थाशे,
रत्नत्रयथी केवळ लेतां जन्म–मरण दूर जाशे...
माता! दरशन तारा रे जगतने आनंद करनारा...
बेटा, तुं तो जगमां उत्तम आत्म–जीवन जीवनारो..
दिव्यध्वनिनो संदेश दईने मुक्तिमार्ग खोलनारो..
बेटा...धर्म तुमारो रे जगतनुं मंगल करनारो..