माता! मुक्ति मारग खुल्लो भव्यो चाल्या आवे....
भरतक्षेत्रमां जयवंत शासन आनंदमंगल आपे....
माता! दरशन तारा रे जगतने आनंद करनारा.
बेटा, तुं छो वर्द्धमान साचो, धर्मवृद्धि करनारो,
महावीर पण साचो तुं छो, मोहमल्ल जीतनारो...
बेटा, धर्म तुम्हारो रे...जगतनुं मंगल करनारो...
माता, करुं वीतरागी वृद्धि निज परम पद पामुं,
जीव बधा जिनधर्मने पामो..एवी भावना भावुं...
माता! दरशन तारा रे....जगतने आनंद देनारा....
बेटा, जगमां धर्मनी वृद्धि थाशे तारा प्रतापे,
जे चाले तुज पगले पगले मोक्षपुरीमां आवे....
बेटा, धर्म तमारो रे जगतने आनंद देनारो....
माता! अनुभूति चेतननी अतिशय मुजने वहाली,
अनुभूतिमां आनंद उल्लसे एनी जात ज न्यारी....
माता..दरशन तारा रे जगतने आनंद देनारा...
बेटा, तुं तो स्वानुभूतिनी मस्तीमां नित म्हाले....
हींचोळुं हीरलानी दोरे, उरनां वहाले–वहाले...
बेटा, जन्म तमारो रे जगतने आनंद देनारो....
[अहो, त्रिशलामाता अने बालतीर्थंकर वर्द्धमान–कुंवरनी आ चर्चा
अद्भुत आनंदकारी छे. आजे उजवाई रहेल वीरनाथ भगवानना
अढीहजारमा निर्वाणमहोत्सवनुं आ महान वर्ष जगतना जीवोने मंगलरूप
हो. वीरशासनना प्रतापे घरेघरे आवा उत्तम संस्कारवाळा माता अने
बाळको जागो ने आत्मकल्याणवडे जैनशासनने शोभावो.
–जय महावीर]
[ब्र. हरिभाई रचित माता–पुत्रनो आ संवाद अत्यंत मधुर संगीत
सहित घाटकोपरनी भजनमंडळीए टेप–रेकर्ड करी आपेल छे, जे सांभळतां
अत्यंत प्रसन्नता थाय छे. ]