: ४६ : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
वखतना बे सगा भाई, तेमां पुण्य–पापना फळ अनुसार एक तो स्वर्गमां गयो ने
बीजो नरकमां गयो.
• त्यारपछी ते हाथीनो जीव मनुष्य थईने अग्निवेग नामनो मुनि थयो, ने
सर्पनो जीव अजगर थईने ते मुनिने खाई गयो. एक स्वर्गमां गयो, बीजो
नरकमां थयो.
• पछी ते हाथीनो जीव विदेहक्षेत्रमां वज्रनाभी चक्रवर्ती थयो ने मुनि थईने
ध्यानमां बेठो हतो; त्यां सर्पनो जीव भील थयेलो, तेणे बाणवडे ते मुनिने
मारी नांख्या; पाछा एक स्वर्गमां गया ने बीजो नरकमां गयो.
• पछी ते हाथीनो जीव आनंदकुमार नामनो राजा थयो, ने सर्प (कमठ) नो जीव
सिंह थयो. आनंदकुमारे मुनि थईने तीर्थंकर नामकर्म बांध्युं; एकवार ते
ध्यानमां बेठा हता त्यां सिंह आवीने तेमने खाई गयो. एक स्वर्गमां गया,
बीजो नरकमां गयो.
स्वर्गमांथी नीकळीने ते हाथीनो जीव वाराणसी (काशी) नगरीना राजकुमार
तरीके अवतर्यो. एनुं नाम पारसनाथ. ए ज आपणा तेवीसमा तीर्थंकर. हाथीना
भवमां आत्मानी ओळखाण करेली तेना प्रतापे आगळ वधीने तेओ केवळज्ञान
पाम्या, ने सम्मेदशिखरनी सुवर्णभद्र नामनी टूंक उपरथी श्रावण सुद सातमे मोक्ष
पाम्या.
वाह, जुओ, जैनधर्मनो प्रताप! तेमां एक हाथीनो जीव पण आत्माने
ओळखीने आगळ वधतां परमात्मा बनी गयो. बंधुओ! आपणे पण आवो जैनधर्म
पाम्या छीए; तो तमे पण हाथीनी जेम आत्माने ओळखजो ने परमात्मा बनजो.
भेगाभेगी एक बीजी वात पण जाणी ल्यो : जे कमठ अने सर्पना जीवे अनेक
वार ते हाथीना जीवने मार्यो, ते ज सर्पनो जीव, ज्यारे ते हाथीनो जीव भगवान थयो
त्यारे तेमनी पासेथी धर्म पाम्यो ने पोताना आत्माने ओळखीने ते स्वर्गमां गयो.
थोडा वखतमां ते पण मोक्षपदने पामशे.
सम्यग्दर्शनना प्रतापे हाथीमांथी भगवान बनेला ते परमात्माने नमस्कार हो
(बीजा हाथीनी वार्ता पूरी.)
बंधुओ, हवे थोडा वखत पछी तमने सिंहनी वार्ता कहेशुं. “अरर!
सिंहनी वार्ता! –सिंहनी तो बीक लागे! ” डरो मा! बंधुओ! आ तो धर्मात्मा
–सिंहनी वात छे, ए तमने करडशे नहि, –ऊल्टुं एने देखीने तो तमनेय
आत्माने ओळखवानी प्रेरणा जागशे, ने ते सिंह उपर प्रेम आवशे.
–जय महावीर