Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 74 of 83

background image
: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ६५ :
• ता. ३१ मार्चना रोज भक्तिसहित नौकाविहारपूर्वक सिद्धवरकूट–सिद्धिधामनी
यात्रा २५० यात्रिकोना संघसहित गुरुदेवे हर्षोल्लासपूर्ण वातावरणमां करी.
सिद्धवरकुट तीर्थनुं रोमांचक वर्णन वांचवा, अने नौकाविहारना भक्तिमय
वातावरणमां महालवा चाहता हो तो ‘मंगलतीर्थयात्रा’ पुस्तक वांचो
तीर्थयात्रामां पू. बेनश्रीबेने आनंदकारी भक्ति करावी हती.
बीना–बजरिया: पू कानजीस्वामी पधारतां आनंद–उत्सवपूर्वक जिनमंदिर उपर
कळश चढाववामां आव्यो, ने सुंदर धर्मप्रभावना थई. जैन समाजने घणो
उत्साह हतो.
दिल्ही शहेरमां महावीर–धर्मचक्रनुं भव्यस्वागत अने आपणुं कर्तव्य:
भगवान महावीरनुं धर्मचक्र आज भारतभरमां चाली रह्युं छे. भारतना
विधविध प्रांतोमां अत्यारे छ धर्मचक्र जैनधर्मनो जयजयकार गजावी रह्या छे.
जाणे फरीथी महावीर भगवान आ भरतभूमिमां विचरता होय एम ठेरठेर
महान उल्लासपूर्वक तेमना धर्मचक्रनुं उमंगभर्युं स्वागत थई रह्युं छे.
ता. १२–३–७५ ना रोज आठसो यात्रिकोना संघसहित गुजरातप्रदेशनुं धर्मचक्र
दिल्हीनगरीमां प्रवेश्युं त्यारे नगरीने खूबज शणगारीने, आकाशमांथी
पुष्पवृष्टि सहित भव्य स्वागत थयुं हतुं. धर्मध्वज–बेन्डवाजां हाथी–घोडा–ऊंट,
अनेक धार्मिकरचनाओ तेमज भजन–मंडळीओ अने हजारो भक्तजनोए जे
उमंगथी धर्मचक्रनुं स्वागत कर्युं ते दर्शनीय हतुं. आजे भारतना खुणे–खुणे अने
विदेशोमां पण तीर्थंकर महावीरजिनेश्वरनो जे अपार महिमा प्रसिद्ध थई रह्यो
छे ते देखीने आनंद थाय छे. आपणा जीवनमां आपणने आ एक अभूतपूर्व
एवो मजानो सुअवसर मळ्‌यो छे के आपणे बधा जैनो हृदयथी एक थईने,
आपणा महावीरभगवानना धर्मध्वजने विश्वना उन्नत्त गगनमां फरकावीए
अरे, महावीरना भक्त आपणे बधा साधर्मीओ जो एकबीजा साथे रहीने
प्रेमथी अरस्परस नहीं हळीमळीए तो आपणा उत्सवनी शोभा केम वधशे?
आवो....एकमेक थई हळीमळीने उत्सवनी शोभा बढावो.
“हठाग्रह छोड दो.....साधर्मीप्रेम जोड दो! ”
आपणे व्यवहारकुशळ गणाता जैनलोको, लाखो रूपियाना खर्चे केस लडीलडीने,
कोई जैनेतर न्यायधीश द्वारा आपणा तीर्थो बाबतमां अपाता फेंसलाने मानवा
तैयार छीए, –परंतु आश्चर्य छे के, आपणा ज शासननायक वीरनाथ
भगवानना नाम पर