
विधविध प्रांतोमां अत्यारे छ धर्मचक्र जैनधर्मनो जयजयकार गजावी रह्या छे.
जाणे फरीथी महावीर भगवान आ भरतभूमिमां विचरता होय एम ठेरठेर
महान उल्लासपूर्वक तेमना धर्मचक्रनुं उमंगभर्युं स्वागत थई रह्युं छे.
ता. १२–३–७५ ना रोज आठसो यात्रिकोना संघसहित गुजरातप्रदेशनुं धर्मचक्र
दिल्हीनगरीमां प्रवेश्युं त्यारे नगरीने खूबज शणगारीने, आकाशमांथी
पुष्पवृष्टि सहित भव्य स्वागत थयुं हतुं. धर्मध्वज–बेन्डवाजां हाथी–घोडा–ऊंट,
अनेक धार्मिकरचनाओ तेमज भजन–मंडळीओ अने हजारो भक्तजनोए जे
उमंगथी धर्मचक्रनुं स्वागत कर्युं ते दर्शनीय हतुं. आजे भारतना खुणे–खुणे अने
विदेशोमां पण तीर्थंकर महावीरजिनेश्वरनो जे अपार महिमा प्रसिद्ध थई रह्यो
छे ते देखीने आनंद थाय छे. आपणा जीवनमां आपणने आ एक अभूतपूर्व
एवो मजानो सुअवसर मळ्यो छे के आपणे बधा जैनो हृदयथी एक थईने,
आपणा महावीरभगवानना धर्मध्वजने विश्वना उन्नत्त गगनमां फरकावीए
अरे, महावीरना भक्त आपणे बधा साधर्मीओ जो एकबीजा साथे रहीने
प्रेमथी अरस्परस नहीं हळीमळीए तो आपणा उत्सवनी शोभा केम वधशे?
आवो....एकमेक थई हळीमळीने उत्सवनी शोभा बढावो.
कोई जैनेतर न्यायधीश द्वारा आपणा तीर्थो बाबतमां अपाता फेंसलाने मानवा
तैयार छीए, –परंतु आश्चर्य छे के, आपणा ज शासननायक वीरनाथ
भगवानना नाम पर