Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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जिनबिंब–प्रतिष्ठा...तीर्थयात्रा...प्रभावना....
धर्मचक्र विहार....ज्ञानशिबिर...
आप आ वांचता हशो त्यारे, चैत्र सुद तेरसे, बेंगलोरशहेरमां
जिनभगवंतोनी मंगलप्रतिष्ठा गुरु कहानना मंगलहस्ते थई रही हशे.....
धर्मचक्रना हर्षमय धमधमाट वच्चे महावीर भगवाननो भव्य
जन्मकल्याणकउत्सव उजवातो हशे.
पू. गुरुदेव सागरशहेर पधारतां
शेठश्री भगवानदासजीनी
आगेवानीमां भव्य स्वागत थयुं.
हजारो जिज्ञासुओए उमंगथी लाभ
खूब जागृती आपना प्रतापे आवी
छे–एम कहीने शेठजी पू. गुरुदेवनो
उपकार मानी रह्या छे.
मध्यप्रदेशना डाकुगीरी छोडीने
शरणे आवेला भूतपूर्व डाकुओने
बेगमगंजनी खुल्ली जेलमां वैराग्यमय संबोधन गुरुदेवे कर्युं हतुं, ने
सज्जनतापूर्ण शांतिमय जीवन जीववानी प्रेरणा करी हती.
ता. २८–३–७५ पू. गुरुदेव
खंडवाशहेर पधारतां जैन–समाजे
उमंगभर्युं स्वागत् कर्युं. परस्पर
वत्सलता देखीने प्रसन्नता थती हती.
आ प्रसंगे सिद्धचक्रमंडलविद्याननी
पूर्णता थई हती. प्रवचन द्वारा शुद्ध
ज्ञान–आनंदस्वरूप ममत्वहीन
आत्मानो महिमा हजारो जिज्ञासुओना
हृदयमां गुंजी रह्यो हतो; ने वीतराग
जैनमार्ग ए ज आत्महितनो साचो मार्ग छे–एम सर्वत्र प्रसिद्ध थई रह्युं हतुं.