Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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ऋषभादि वीरान्तेभ्य:
कुर्वन्तु जगन्मंगलम्
अद्भुत वीतरागीशांतमुद्रामां शोभी रहेला, आ
चोवीसीना पहेला अने छेल्ला तीर्थंकरभगवंतो,–भगवान
आदिनाथ अने भगवान महावीर, –लंडनशहेरना म्युझीयमने
केवा शोभावी रह्या छे! भारतनी आ भव्य वीतरागी संस्कृति
जगतमां सौने आकर्षी रही छे.....एटले तो अंग्रेजो एने
भारतमांथी विलायत लई गया! प्रभु भले विलायतमां बिराजे,
पण भरतना भक्तोना नमस्कार तो त्यां पण पहोंची जाय छे.
(ज्यां ज्यां प्रतिमा जिनतणी...त्यां त्यां करुं प्रणाम.)