
(देव) : –धर्मात्माओ भेदज्ञानवडे सदाय एवी भक्ति करी रह्या छे.
(देवी) : –बराबर छे; आजे महावीरप्रभु जन्म्या तेमने पण आवुं भेदज्ञान वर्ती ज
शुभराग छे ने राग वगरनो भाव जराय नथी तो त्यां धर्म नथी.
कोईने साधकपणुं थई ज न शके. छठ्ठे गुणस्थाने जे संज्वलनराग छे ते
त्यांनी शुद्धीने हणी शकतो नथी. आम बंने धारा एक साथे छे, छतां
बंने धारा एक थई जती नथी; तेम ज साधकने वीतरागता थया पहेलांं
बंनेमांथी एक्केय धारा सर्वथा छूटी जती नथी. जो शुद्धतानी धारा तूटे
तो साधकपणुं छूटीने अज्ञानी थई जाय; अने जो रागनी धारा छूटी
जाय तो तुरत वीतराग थईने केवळज्ञान थई जाय. आ रीते साधकने
निरंतर निश्चयनुं परिणमन वर्ती रह्युं छे. चोथा गुणस्थानथी शरू करीने
दरेक गुणस्थाने ते ते भूमिकाने योग्य शुद्धतानी धारा निरंतर वर्ते छे.