Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ६४ : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
(देवी) : –खरेखर वीतरागविज्ञाननी प्राप्ति ए ज भगवाननी साची भक्ति छे.
(देव) : –धर्मात्माओ भेदज्ञानवडे सदाय एवी भक्ति करी रह्या छे.
(देवी) : –बराबर छे; आजे महावीरप्रभु जन्म्या तेमने पण आवुं भेदज्ञान वर्ती ज
रह्युं छे.
(देव) : –अहा, भगवान तो हजी एक दिवसना बाळक छे, छतां ते पण पोताना
चैतन्यस्वभावने उपासी रह्या छे.
(देव) : –एवा भेदविज्ञानी–भगवाननो जन्मोत्सव करवानो आजे अवसर आव्यो
छे.
(देव) :–वाह रे वाह! भगवानने ओळखीने भवथी तरवानो आ महान अवसर छे.
“जय महावीर” (ले. ब्र. ह. जैन)
बे–धारा: एक मोक्षनी; एक बंधनी
रागभाव तो बंधनुं कारण थाय छे ने अरागभाव मोक्षनुं कारण
थाय छे. साधकने आवी बंने धारा साथे होय छे. पण ज्यां एकलो
शुभराग छे ने राग वगरनो भाव जराय नथी तो त्यां धर्म नथी.
चोथा गुणस्थाने जे राग छे ते राग सम्यग्दर्शननी शुद्धीने हणी
शकतो नथी. जो ते राग प्रगटेली शुद्धताने नुकशान करतो होय तो तो
कोईने साधकपणुं थई ज न शके. छठ्ठे गुणस्थाने जे संज्वलनराग छे ते
त्यांनी शुद्धीने हणी शकतो नथी. आम बंने धारा एक साथे छे, छतां
बंने धारा एक थई जती नथी; तेम ज साधकने वीतरागता थया पहेलांं
बंनेमांथी एक्केय धारा सर्वथा छूटी जती नथी. जो शुद्धतानी धारा तूटे
तो साधकपणुं छूटीने अज्ञानी थई जाय; अने जो रागनी धारा छूटी
जाय तो तुरत वीतराग थईने केवळज्ञान थई जाय. आ रीते साधकने
निरंतर निश्चयनुं परिणमन वर्ती रह्युं छे. चोथा गुणस्थानथी शरू करीने
दरेक गुणस्थाने ते ते भूमिकाने योग्य शुद्धतानी धारा निरंतर वर्ते छे.