Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ६३ :
(देवी) :–ए ज आपणा जैनशासननी खूबी छे के कोई पण तत्त्वनो साचो निर्णय
करतां आत्मा स्वसन्मुख थाय छे, ने वीतरागता थाय छे.
(देव) : –तेथी ज सर्वे शास्त्रोनुं तात्पर्य वीतरागता कह्युं छे. वीतरागतानो उपदेश ते
ज ईष्ट उपदेश छे. एवो उपदेश देनारा तीर्थंकरनो आज अवतार थयो छे.
(देवी) : –अरे, अरिहंतदेव प्रत्येनो शुभराग पण ज्यां संसारनुं ज कारण छे त्यां
बीजा रागनी तो शी वात? खरेखर वीतरागतामां ज महान आनंद छे.
(देव) : –परमागमनुं पण ए ज फरमान छे–
तेथी न करवो राग जरीए क््यांय पण मोक्षेच्छुए,
वीतराग थईने ए रीते ते भव्य भवसागर तरे.
(देवी) : –अहो, बलिहारी छे तीर्थंकरोनी, के जेमणे पोते आवो वीतरागमार्ग साध्यो
अने जगतने पण बताव्यो.
(देवी) : –अहा, केवो सुंदर मार्ग छे! मनुष्य थईने आनंदथी आवा मार्गने साधतां
साधतां मोक्षमां जईशुं.
(देवी) : –अरे, आवा सुंदर मार्गने पण जगतना अज्ञानी जीवो निंदे छे; अरे, आवो
मार्ग सांभळवानी पण ना पाडे छे.
(देव) : –भगवानना आवा सुंदर मार्गने पण कोई निंदे तो निंदो, पण मुमुक्षुजीवो
जिनमार्गनी भक्ति कदी छोडता नथी, साचा मार्गथी कदी डगता नथी.
(देवी) : –अहा, आवा सुंदर वीतरागमार्गने प्रसिद्ध करवा माटे ज तीर्थंकरोनो अवतार
छे. माटे आपणे भक्तिथी आवा मार्गने साधीने आत्महित करवुं.
(देव) : –जिनेन्द्र भगवाननो मार्ग परम सुंदर छे–
पण कोई सुंदर मार्गनी ईर्षा करे निंदा वडे;
तेनां सुणी वचनो करो न अभक्ति जिनमारग विषे.
(देवी) :–अहा, आज तो महावीर तीर्थंकरना अवतारनो मंगल दिवस छे. भगवानना
कल्याणक एटले आत्मानुं कल्याण करवानो अवसर!
(देव) :–अहा, धन्य छे प्रभो! आपनो अवतार धन्य छे. जगतने वीतरागविज्ञाननो
महान संदेश आपवा आप अवतर्या छो.