महावीर प्रभुना ज्ञानगगनथी अमृतधारा वरसे छे;
विपुलगिरि पर मंगलवाजां दिव्यध्वनिनां वागे छे.
बाग खील्यां छे रत्नत्रयनां आनंद–आनंदकार छे;
अहो प्रभुजी! शासन तारुं भवथी तारणहार छे.
Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).
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