Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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* आत्मधर्म: (आपनुं प्रिय मासिक) *
गुजराती तेमज हिंदीमां प्रकाशित थाय छे. गुजराती–प्रकाशन दर महिनानी
वीसमी तारीखे प्रगट थाय छे. कारतकथी आसो सुधीनुं वार्षिक लवाजम रूा.
६)– छे. : आत्मधर्म कार्यालय, सोनगढ (सौराष्ट्र)
संपादक उपरना योग्य पत्रोनो जवाब अपाय छे; योग्य प्रश्नोना समाधान
आत्मधर्म द्वारा पण अपाय छे. संपादक साथेना पत्रव्यवहारनुं सरनामुं–
ब्र. हरिलाल जैन, संपादक आत्मधर्म: सोनगढ ()
चैत्र मासनो सुंदर विशेषांक वांचीने घणा जिज्ञासुओए प्रमोद व्यक्त कर्यो छे.
आत्मधर्म एटले जिनवाणीनो घर–घर प्रचार करतुं मुमुक्षुनुं प्रिय मुखपत्र.–
जेन देखतां ज मुमुक्षुनुं चित्त प्रसन्न थई जाय छे. अहा, पोताना आंगणे
जिनवाणी देखीने कोने प्रसन्नता न थाय? तमारा मित्रोने पण जरूर ते
पहोंचाडीने तेने हितमार्गनी प्रेरणा आपो.
आत्मधर्म देश–परदेशना बधा मुमुक्षुओनी प्रिय पत्रिका छे; भगवान
महावीरना शासननो ते परम भक्तिभावथी उद्योत करे छे. आत्मार्थीतानी
पुष्टि करवी, साधर्मीनुं वात्सल्य वधारवुं, देव–गुरु–धर्म–शास्त्रनी सेवा करीने
तेनो महिमा प्रसिद्ध करवो, बाळकोमां उत्तम धर्मसंस्कार रेडवा–ते आ पत्रिकानो
उद्देश छे. साधर्मीओना हार्दिक सहकारने लीधे आ पत्रिका गौरवशील छे. आ
पत्रिकामां जिनशास्त्रानुसार पू. श्री कानजीस्वामीनां प्रवचनो, तत्त्वचर्चाओ,
शास्त्रनी अवनवी वातो, तीर्थोनो महिमा, धर्मप्रभावनाना समाचार,
वैराग्यप्रेरक विशेष लेख–भजन तथा शंकासमाधान अने बालविभाग
आपवामां आवे छे. एनुं संपादन सपूर्ण मध्यस्थताथी ने सम्यक्भावथी थाय
छे. तेनी उदार अने गंभीर संपादन शैलीथी सर्वे साधर्मीजनो प्रसन्न छे.
आ वर्ष “भगवान महावीरना अढीहजारवर्षीय निर्वाणमहोत्सव”ना
हर्षोपलक्षमां आत्मधर्ममां जे विशिष्ट आनंदकारी विविध साहित्य पीरसाय छे
ते आपनी समक्ष ज छे. अहो! आ तो हुं मारुं परम सौभाग्य समजुंं छे के
भगवान महावीरना अपूर्व उपकारने प्रसिद्ध करवा माटे मारा जीवनमां मने
आ अभूतपूर्व सुअवसर प्राप्त थयो छे. प्रभु महावीरे बतावेलो स्वानुभूतिनो
मार्ग भव्यजीवोमां प्रसिद्ध थाओ–एवी मारी भावना छे.
“जय महावीर” – ब्र हरिलाल जैन