Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०१ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वीर सं. २५०१
छ रूपिया वैशाख:
वर्ष ३२ ई. स. 1975
अंक ७ May
जेम आराधक संतोनी परिणति मोक्षने भेटवा दोडे, तेम
यात्रासंघनी मोटरो वीरनाथना मोक्षधामने भेटवा दोडी रही छे.
वीरप्रभुना विहारथी पावन थयेली आ भूमिमां गुरुदेव साथे
यात्राविहार करतां मन आनंदित थाय छे. आ पवित्र मोक्षभूमि हृदयना
ऊंडाणमांथी–गंभीर वैराग्यवाळा अर्जिकामातानी जेम–वीरप्रभुना
विहारनी मंगलगाथा जाणे विरहना वेदनपूर्वक संभळावी रही छे; ए
सांभळतां यात्रिकोनुं हृदय क्षणवारमां अढीहजार वर्षने वींधीने
वीरनाथनी स्मृतिना ऊंडाणमां चाल्युं जाय छे.
दूरथी पावापुरी देखाणी, सरोवर वच्चे शोभतुं जलमंदिर पण
देखायुं, अहा, आ तो आपणा भगवाननुं मुक्तिधाम!–अने आ रह्या
भगवान! दूरथी पण महावीर भगवाननी मुक्तिनगरी जोतां यात्रिकोने
आनंद थयो,–जेम साधकने सिद्धिनां दर्शनथी आनंद थाय तेम.
आपणा भगवान आ स्थळ उपर सिद्धभगवंतोना देशमां
मुक्तिपुरीमां बिराजी रह्या छे (–विरह नथी, अत्यारे पण बिराजी ज
रह्या छे); आ ए ज मुक्तिधाम छे....आपणे भगवानना देशमां आवी
गया छीए ने संसारने भूली गया छीए. भगवानना देशमां कोने आनंद
न होय! पावापुरीनुं वातावरण मंगलमय छे, हृदयने प्रसन्न करे छे.
घणा वर्षोथी सांभळेली अने चित्रमां जोयेली वीरनाथनी निर्वाणभूमिने
साक्षात् नीहाळतां, अने ए भूमिमां विचरतां मुमुक्षु अनेरो आह्लाद
अनुभवे छे.–जेम घणा वर्षोथी सांभळेलुं ने भावेलुं चैतन्यतत्त्व
अनुभूतिमां साक्षात् देखीने मुमुक्षु परम आनंदित थाय छे तेम!
(अनुसंधान पानुं २२)