वीरप्रभुना विहारथी पावन थयेली आ भूमिमां गुरुदेव साथे
ऊंडाणमांथी–गंभीर वैराग्यवाळा अर्जिकामातानी जेम–वीरप्रभुना
विहारनी मंगलगाथा जाणे विरहना वेदनपूर्वक संभळावी रही छे; ए
सांभळतां यात्रिकोनुं हृदय क्षणवारमां अढीहजार वर्षने वींधीने
वीरनाथनी स्मृतिना ऊंडाणमां चाल्युं जाय छे.
भगवान! दूरथी पण महावीर भगवाननी मुक्तिनगरी जोतां यात्रिकोने
आनंद थयो,–जेम साधकने सिद्धिनां दर्शनथी आनंद थाय तेम.
रह्या छे); आ ए ज मुक्तिधाम छे....आपणे भगवानना देशमां आवी
गया छीए ने संसारने भूली गया छीए. भगवानना देशमां कोने आनंद
न होय! पावापुरीनुं वातावरण मंगलमय छे, हृदयने प्रसन्न करे छे.
घणा वर्षोथी सांभळेली अने चित्रमां जोयेली वीरनाथनी निर्वाणभूमिने
साक्षात् नीहाळतां, अने ए भूमिमां विचरतां मुमुक्षु अनेरो आह्लाद
अनुभवे छे.–जेम घणा वर्षोथी सांभळेलुं ने भावेलुं चैतन्यतत्त्व
अनुभूतिमां साक्षात् देखीने मुमुक्षु परम आनंदित थाय छे तेम!