Atmadharma magazine - Ank 379
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 53

background image
: २ : आत्मधर्म : वैशाख : २५०१
८६ रत्नोनी मंगल माळ
(गतांकथी चालु)
५०. अहा, छए कारकोनी स्वाधीनताथी शोभतो आ चैतन्यभगवान
पोते मोटो दातार छे;–एवो दातार छे के अंतर्मुख थतां
सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धपद सुधीनां अमूल्य रत्नो आपे.
५१. ज्यां अतर्मुख थयो त्यां चैतन्यदातार कहे छे के माग....माग! तारे
जे जोईए ते माग! आ रह्यो चैतन्यभंडार, तेमांथी तारे जे
जोईए ते निर्मळ पर्याय ले.
५२. आत्मा अंतर्मुख थईने पोतामांथी रागने ल्ये एवो नथी, पण
निर्मळभावने ज ल्ये छे. पोते ज दातार ने पोते ज लेनार,–पछी
पोत मलिनता शा माटे ल्ये?
५३. अरे, कल्पवृक्ष पासे जईए ने वांछितफळ न आपे तो ए कल्पवृक्ष
शेनुं?–आ चैतन्य–कल्पवृक्ष पासे जतां केवळज्ञान अने मोक्षफळ
जो ते न आपे तो ए चैतन्यनो महिमा शो?
५४. चैतन्य पासे जाय (एटले के अंतर्मुख थाय) ते खाली हाथे पाछो
आवे ज नहीं, तेने सम्यग्दर्शनादि निर्मळ भाव मळे ज.
५५. उत्पाद–व्ययरूप भावो क्षण क्षणे पलटता होवा छतां, आत्मा
पोतानी