: वैशाख : २५०१ आत्मधर्म : ३ :
अपादानशक्तिथी ध्रुवपणे टकी रहे छे. आवा उत्पाद–व्यय–
ध्रुवस्वरूपी आत्मामांथी धर्मनो प्रवाह आव्या ज करे छे.
५६. धर्मी जाणे छे के षट्कारकोथी स्वतंत्र प्रभु–एवो जे मारो आत्मा,
तेमांथी ज हुं मारा सम्यग्दर्शनादि कार्य लउं छुं.
५७. मारा धर्मनी ध्रुवखाण मारो आत्मा ज छे, कोई परद्रव्य के रागादि
ते मारा धर्मनी खाण नथी; माटे धर्मनुं साधन बहार शोधवानी
व्यग्रता मने नथी.
५८. अपादानशक्तिथी आत्मानी ध्रुवता बतावीने आचार्यदेव कहे छे के
भाई, आवी अनंत शक्तिवाळा आत्मामांथी तुं धर्म ले; बहारमां
न शोध.
५९. तारो आत्मा ते ज तारा धर्मनो धींगधणी छे; ज्यां ए
चैतन्यस्वभावने धींगधणीपणे धार्यो त्यां तेनी निर्मळदशाने कोई
रोकी शके नहीं.
६०. धर्मी जाणे छे के ज्ञान अने सुखस्वरूप एवो मारो ध्रुव आत्मा ज मारुं
शरण छे. बीजुं कोई एवुं नथी के जे ध्रुव टकीने मने शरण आपे.
६१. निर्मळपर्याय थाय तेमां कांई राग लंबाईने धु्रवपणे नथी रहेतो, पण
चिदानंदस्वभाव ज ध्रुवपणे रहे छे.–आवी शक्तिवाळा आत्माने
ओळखे तो रागनो आश्रय छूटीने स्वभावनो आश्रय थाय.
६२. छ कारकोमां छेल्लुं अधिकरण छे; आत्मामां सम्यग्दर्शन वगेरे क्रिया
थवानो आधार कोण? के भगवान आत्मा ज अधिकरणशक्तिवडे
तेनो आधार थाय छे, बीजा कोई आधार नथी.
६३. भक्तिमां निमित्तथी एम कहेवाय के हे गुरु! आपनो ज आधार
छे....आपना ज आधारे अमे धर्म पाम्या....आम धर्मात्मा पण
कहे; छतां अंतरमां पोतानी अधिकरणशक्तिनुं भान छे के आ
मारो स्वभाव ज मारा धर्मनो आधार छे; बीजो आधार नथी.
६४. भाई, देहना आधारे तो तारो धर्म नथी, रागना आधारे पण तारो
धर्म नथी, तारो धर्म तो तारा आत्मस्वभावना आधारे ज छे.
६५. संयोग छूटे त्यां निराधार थई गया–एम धर्मी मानता नथी.
अमारा धर्मनो ध्रुव आधार अमारामां ज पड्यो छे–एवी निःशंक
प्रतीत तेने वर्ते छे.