
परभावने आत्मा करे–ए मोह छे व्यवहारीनो.
प्राणीओ! तमारो ज्ञानस्वरूप आत्मा जडनी क्रियानो के
रागनो कर्ता नथी एम तमे समजो.
माटे आचार्यदेव कहे छे के अरे भाई! ‘आत्मा
परभावनो कर्ता छे’ –ए तो व्यवहारी जीवनो मोह छे!
आत्मा खरेखर परभावनो कर्ता तो छे नहीं; छतां परनो
कर्ता माने छे तेने अहीं समजावे छे के अरे जीव! तारो ए
मोह छोड! तारो आत्मा तो ज्ञानस्वरूप छे, एम तुं
समज! ज्ञान साथे तन्मय एवा वीतरागी शांति–श्रद्धा
वगेरे भावो तारुं स्वकार्य छे, के जे तारा आत्मस्वभावथी
अभिन्न छे.