Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : जेठ : २५०१
लाखो वातोमां सारभूत एक ज वात
जगतना द्वंद – फंद छोडीने पुण्य–पापथी भिन्न चिदानंद
आत्माने ध्यावो.

सम्यग्ज्ञाननी आराधनानो सुंदर उपदेश आपतां छहढाळानी चोथी ढाळमां कहे
छे के–
हे भव्यजीवो! तमे पुद्गलथी भिन्न अने पुण्य–पापथी पण भिन्न एवा
चैतन्यस्वरूप आत्माने जाणीने सम्यग्ज्ञान प्रगट करो. आवा ज्ञानपूर्वक हे भाई! तमे
पुण्य–पापनां फळमां हर्ष–विषाद न करो; केमके ते तो पुद्गलनी पर्याय छे, ते उपजीने
नाश थाय छे, ने फरीने पाछी प्रगट थाय छे. लाखो वातोना साररूप एवी आ एक
वात छे तेने निश्चयथी अंतरमां धारण करो,–दुनियाना बधा दंद अने फंद तोडीने
अंतरमां पोताना आत्माने सदाय ध्यावो.
आत्माने जाणनारुं सम्यग्ज्ञान छे ते परम अमृत छे; ते सम्यग्ज्ञान पुण्य–
पापथी जुदुं छे. माटे कहे छे के हे आत्मार्थीभाई! तमे पुण्यना फळमां हरखो नहीं ने
पापना फळमां विलखो नहीं. पूर्वे शुभाशुभ भावथी पुण्य–पापरूप कर्मो बंधाया, तेना
फळमां जे पुद्गलसंयोग मळ्‌या, ते कांई जीवना वर्तमान प्रयत्ननुं फळ नथी, तेमज तेमां
जीवने सुख–दुःख नथी; ज्ञानथी ते जुदा छे, माटे तेमां हर्ष–विषाद न करो; पण बंनेथी
जुदा एवा ज्ञाननुं सेवन करीने पुण्य–पापमां समभाव राखो. मिथ्याद्रष्टि पुण्यफळमां
सुख अने पापफळमां दुःख माने छे, एटले तेमां हर्ष–शोक करे छे. ज्ञानस्वरूप आत्माने
नित्य ध्यावो. आ वात निश्चय करीने चोक्कसपणे अंतरमां धारण करो.
पुण्यफळ तो बळेला अनाजना ऊकडिया जेवा छे; जेम बळेली खीचडी तो
कागडा–कूतरा खाय, माणस न खाय, तेम आत्माना गुण दाझया एटले के तेमां विकृति
थईने राग थयो त्यारे पुण्य बंधाया; ते राग के तेनां फळ ए कांई धर्मीनो खोराक नथी;
धर्मी तो रागथी जुदी चैतन्यशांतिने ज वेदे छे. अज्ञानी ते रागमां ने रागना फळमां
सुख मानीने तेने वेदे छे. आत्मा पोतानी शांतिमांथी खसीने ज्यारे बहार