Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २५०१ आत्मधर्म : ३३ :
मोक्षमार्गमां वीतरागी
चारित्रना चमकारा
जेम सम्यग्दर्शन अने आत्मज्ञान वगर मोक्ष नथी होतो–ते
परम सत्य छे, तेम ए पण एटलुं ज सत्य छे के वीतरागी चारित्र
वगर मोक्ष होतो नथी. एटले मोक्षार्थीने सम्यग्दर्शननी जेम
सम्यक्चारित्र पण अत्यंत वहालुं छे.
जेणे सर्व कषायोथी अत्यंत जुदा एवा उपयोगस्वभावने जाणीने सम्यग्दर्शन
अने भेदज्ञान कर्युं छे तेने पछी वीतरागभावनी वृद्धि थतां श्रावकपणुं तथा मुनिपणुं
होय छे; तेमां चारित्रना वीतरागी चमकारथी आत्मा शोभी ऊठे छे.
शुभ–अशुभ, पुण्य–पाप, हर्ष–शोक ते बधा संसारना द्वंद छे; ते बधायथी भिन्न
चेतनास्वरूप आत्मा छे. एवा आत्माने जाणवो–श्रद्धवो–ध्याववो ते ज शास्त्रनी लाखो
वातोनो सार छे; माटे आवो निश्चय करीने अंतरमां तमे सदा आत्माने ध्यावो–एम
कह्युं. आ रीते प्रथम सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञाननी आराधना जेणे प्रगट करी छे तेने
मोक्षमार्गमां आगळ वधतां शुं थाय छे! के चारित्रना चमकार थाय छे. केवा चमकार
थाय छे? तेनुं आ वर्णन छे.
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानमां जे आत्मस्वरूप अनुभवमां आव्युं छे ते
ज्ञानानंदस्वरूपमां एकाग्र थतां आत्मशांति वधे ने रागादि कषायभावो छूटे, तेना
प्रमाणमां चारित्रदशा होय छे. ते चारित्र रागरूप नथी पण वीतरागभावरूप छे, तेमां
कषाय नथी पण परम शांति छे; ते स्वर्गना भवनुं कारण नथी पण मोक्षनुं कारण छे.
आवी चारित्रदशा साथे ते भूमिकामां जे राग बाकी रही जाय ते अत्यंत मर्यादित होय छे.
चोथागुणस्थाने अंशे वीतरागभाव थयो छे पण व्रतभूमिकाने योग्य
वीतरागभाव हजी त्यां नथी होतो तेथी तेने ‘अविरत’ कहेवाय छे. चोथा गुणस्थाने
सम्यग्द्रष्टिने अनंतानुबंधी क्रोध–मान–माया–लोभना अभावरूप ‘स्वरूपाचरण’ तो छे,
तथा तेटली आत्मशांति तो निरंतर वर्ते छे; पण हिंसादि पापोना नियमथी त्यागरूप
चारित्र श्रावकने तथा मुनिओने होय छे. तेमां श्रावकने पांचमागुणस्थाने जोके
एकदेशचारित्र होय छे, छतां सर्वार्थसिद्धिना देवो करतांय ते वधारे सुखी छे. –अहो,
चारित्रदशा केवी महिमावंत छे!