Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 35 of 45

background image
: ३२ : आत्मधर्म : जेठ : २५०१
गुण एमने एम टकी रहे, आवी वस्तुस्थिति सर्वज्ञ सिवाय बीजा कोई प्रगट करी शके
नहि. अन्यमतनी भाषा भले कोमळ होय पण अंदर मिथ्यात्वनुं झेर छे, तेमां जीवने
निजगुणोनी प्राप्ति थती नथी; ते एकान्तमतो मिथ्या छे. हे नाथ! तारुं अनेकान्तशासन
ज ‘समन्तभद्ररूप’ (सर्व प्रकारे कल्याणरूप) अने निर्दोष छे. हे नाथ! तारा आवा
निर्दोष अनेकान्तशासनने मुकीने बीजा एकान्तशासनने कोण सेवे? ते तो रागना पोषक
छे, अने एकेक आत्मामां अनंत गुणो छे–एवा गुणनी प्राप्ति ते एकांत मतोमां नथी. जो
अनंतगुण मानवा जाय तो अनेकान्त साबित थई जाय छे ने सर्वथा एकान्त (–अद्वैत
अथवा सर्वथा नित्य के सर्वथा अनित्य–ए बधा) मिथ्या ठरे छे. माटे हे नाथ! आपना
निर्दोष शासन सिवाय बीजा कोई मत जीवने कल्याणरूप नथी; ते परमत तो जीवोने
अनंत संसारमां रखडावनार छे, ने आपनुं शासन जीवोने तारनार छे.
जिनशासनना घणा महिमापूर्वक गुरुदेवे कह्युं–अहा, जुओ तो खरा!
समन्तभद्रआचार्ये केवी सरस स्तुति करी छे!! तेमणे रचेली आ २४ तीर्थंकरोनी
स्तुतिमां घणा गंभीर भावो भर्या छे. तेमने माटे एवो उल्लेख छे के तेओ भविष्यमां
तीर्थंकर थशे. आवा समन्तभद्रस्वामी महावीतरागी संत, तेमनुं वचन अत्यंत
प्रमाणभूत छे, जेवुं भगवान कुंदकुंदाचार्यनुं वचन अने जेवुं अमृतचंद्राचार्यनुं वचन
तेवुं ज समन्तभद्रस्वामीनुं वचन! तेओ स्पष्ट कहे छे के एक अर्हंतदेवनुं अनेकान्तमय
जिनशासन ज सर्वे जीवोने भद्ररूप छे; एना सिवाय बीजा बधाय एकान्तमतो दुषित
छे, मिथ्या छे, ने जीवोनुं अहित करनार छे. आवुं कल्याणकारी जिनशासन भद्ररूप अने
मंगळरूप छे.
आ रीते गुरुदेवे घणा ज वैराग्य अने भक्तिभावथी उपरोक्त स्तुतिनो अर्थ
कह्यो हतो....ते सांभळीने सर्वे मुमुक्षुओने घणो आनंद थयो हतो ने जैनधर्मना जयनाद
गाजी उठया हता.
अहो जीवो! आवुं भद्ररूप कल्याणकारी जिनशासन पामीने तमे आनंदित
थाओ. आवुं जिनशासन पामीने हवे बीजे क््यांय हितने माटे भटकवानुं छोडीने,
जिनमार्गमां ज एकतान थईने आत्महितने साधो. आत्महितनो आ अमूल्य सोनेरी
अवसर छे.
‘जैनं जयतु शासनम्’ (‘सुवर्णसन्देश’ मांथी साभार: वीर सं. २४८८)