Atmadharma magazine - Ank 380
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २५०१ आत्मधर्म : ३१ :
सर्व जीवोने भद्रकारी जिनशासन
[महावीरप्रभुना अनेकान्त–शासननी स्तुति: समंतभद्रदेव]
मागसर वद त्रीजने रविवारे वीसविहरमान मंडलविधाननी पूर्णता प्रसंगे
अभिषेक थयो तेमां पू. गुरुदेव उपस्थित हता ने तेओश्रीए सीमंधरनाथने अर्घ
चडावीने गंधोदक लीधुं हतुं त्यारबाद स्वाध्याय मंदिरमां पधार्या हता, त्यां गुरुदेवे
मांगळिकरूपे समन्तभद्रस्वामीना स्वयंभूस्तोत्रमांथी छेल्ली कडी पं. श्री हिंमतभाई
पासे वंचावीने घणामहिमा पूर्वक तेना अर्थ कर्या हता; स्तुतिकार–आचार्य, महावीर–
प्रभुनी स्तुति करतां कहे छे के–
“परमत मृदुवचन रचित भी है, निजगुण–संप्राप्ति रहित वह है;
तव मत नयभंग विभूषित है, सुसमन्तभद्र निर्दुषित है.” १४३.
हे वीरनाथ जिनदेव! आपनुं अने आपना जेवा बीजा अनंता तीर्थंकरोनुं जे
अनेकान्तशासन छे ते भद्ररूप छे, कल्याणकारी छे, अने आपना शासनथी भिन्न जे
परमत छे ते कानोने प्रिय लागे एवी मधुर रचनावाळा होवा छतां, आत्महितकारी
एवा बहुगुणोनी संपत्तिथी रहित छे, सर्वथा अनेकान्तवादनो आश्रय लेवाने कारणे
तेना सेवनथी निजगुणोनी प्राप्ति थती नथी; तेम ज ते यथार्थ वस्तुस्वरूपना
निरुपणमां असमर्थ होवाथी अपूर्ण छे, बाधा सहित छे अने जगतने माटे
अकल्याणकारी छे. परंतु हे नाथ! अनेक नयभंगोथी विभूषित आपनो अनेकान्तमत
यथार्थ वस्तुस्थितिना निरुपणमां समर्थ छे, बहु गुणोनी संपत्तिथी युक्त छे अर्थात्
तेना सेवन वडे बहु गुणोनी प्राप्ति थाय छे, अने ते सर्व प्रकारे भद्ररूप छे, निर्बाध छे,
विशिष्ट शोभा–संपन्न छे अने जगतने माटे कल्याणरूप छे.
घणा प्रमोदपूर्वक गुरुदेवे कह्युं: वाह, जुओ तो खरा केवी स्तुति करी छे!! अहो,
सर्वज्ञ वीतरागदेवनुं अनेकान्तशासन सर्वे जीवोने कल्याणकारी छे, तेमां ज निजगुणनी
प्राप्ति छे. वस्तुमां एक समयमां उत्पाद–व्यय–ध्रुवता, क्षणे क्षणे बदले छतां निज–