Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : ९ :
• अपूर्व शांति पामवा आत्माने ओळखो •
लेखांक : ७
अषाड वद एकम एटले भगवान महावीरना
धर्मचक्रप्रवर्तननो मंगल दिवस! अहा, ए दिवसे
राजगृहीमां विपुलाचल उपर केवो महान अपूर्व
आनंदकारी धर्मोत्सव उजवायो हशे! प्रभुना जे
दिव्यध्वनिनो नानकडो अंश पण आजे (अढीहजार ने
एकत्रीस वर्ष पछी पण) आपणने आवो महान आनंद
अने शांति आपे छे–ते प्रभुनी सर्वज्ञतानी ने तेमना ईष्ट
उपदेशनी शी वात!! अषाड वद एकमे ए मंगल दिवस
छे; सौ आनंदथी वीरप्रभुने याद करीने शांतरसने पीजो.
भगवान महावीर केवळज्ञान पाम्या, ने विपुलाचलपर दिव्यध्वनिवडे निर्वाणनो
मार्ग बताव्यो; निर्वाणनो मार्ग तो अंतरमां आत्माना आधारे छे. आत्मानी शक्तिने
जे जाणतो नथी ते पराधीनपणे संसारमां रखडे छे. आत्मा दैवी चैतन्यशक्तिवाळो देव
छे, पोते ज पोतानो आराध्य देव छे...तेनी आराधना ते ज निर्वाणनो महोत्सव छे.
ज्ञायकमूर्ति आत्मा ज मारे उपादेय छे, एम जाणीने स्वभावनुं साधन कर्या
वगर बीजो कोई मोक्षनो उपाय नथी.
माटे मुमुक्षु–मोक्षार्थीजीवने देहथी भिन्न स्वसंवेद्य ज्ञानानंदतत्त्व जाणवानो
उपदेश छे.
मोक्ष तो देहरहित छे–रागरहित छे. देहने तथा रागने ज जे आत्मानुं स्वरूप
माने ते तेनाथी केम छूटे? चैतन्यस्वभाव देहथी ने रागथी पार छे, एनुं स्वसंवेदन ते
ज मोक्षनो उपाय छे.
चेतनस्वरूप आत्माना अंतरंग परिचय वगर शुभ रागथी गमे तेटलां व्रत–तप