Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
करे तोपण मुक्तिनो उपाय हाथ आवतो नथी. देहथी ने रागथी छूटुं पडवुं छे तेने बदले
ते देहने ने रागने ज आत्मा माने ते तेनाथी छूटो क््यारे पडे? देहथी ने रागथी भिन्न,
हुं तो चैतन्यस्वरूप छुं–एवुं ज्ञान करीने तेमां एकाग्रतावडे ज जीव मुक्त थाय छे.
ज्ञानानंदस्वरूप आत्मामां एकाग्रता वगर बधुं निरर्थक छे, तेना वडे निर्वाणपद पमातुं
नथी.
ज्ञानी जाणे छे के अंतरमां स्वानुभवथी प्रसिद्ध एवुं जे मारुं परमात्मतत्त्व छे ते
ज हुं छुं, अने जे हुं छुं ते ज परमात्मतत्त्व छे. आ प्रमाणे परमात्मतत्त्वमां अभेदता
होवाने कारणे हुं ज मारो उपास्यदेव छुं, माराथी भिन्न बीजुं कोई मारे उपास्य नथी–
आवी वस्तुस्थिति छे. आराध्य–आराधकभावनी व्यवस्था पोताना स्वतत्त्वमां
समाय छे.
जीव रागादि विकारथी तो छूटवा मांगे छे; जेनाथी छूटवा मांगे छे ते कांई
छूटवामां मदद करे? ना. रागादि विकारथी तो छूटवुं छे तो ते छूटवामां राग केम मदद
करे? राग करतां करतां छूटकारो (मोक्षमार्ग) थशे एम जे माने छे तेने खरेखर रागथी
छूटवानी भावना नथी. पुण्य करतां करतां मोक्षनां द्वारा खूली जशे–एम माननारने
मोक्षनी खरी भावना ज नथी, मोक्षने ते खरेखर ओळखतो पण नथी.
जो रागथी लाभ थवानो भगवाननो उपदेश होय तो ते भगवान पोते रागमां
केम न रोकाणा? भगवान राग छोडीने वीतराग केम थया? भगवान पोते राग
छोडीने स्वरूपमां ठर्या ते ज एम बतावे छे के राग छोडवानो ज भगवाननो उपदेश छे;
रागथी लाभ थाय एम जे माने ते भगवानना उपदेशने मानतो नथी.
रागथी धर्म मानीने रागने जे आराधे छे ते भगवानना मार्गे चालनारो नथी.
अरे जीव! तारे सर्वज्ञ भगवानना मार्गे चालवुं होय–प्रभुजीना पगले–पगले चालवुं
होय तो रागनी भावना छोडीने चिदानंदस्वभावनी ज भावना कर...तेनी भावनामां
एकाग्र थईने चैतन्य–जिनप्रतिमा था...आवो परमात्मानो मार्ग छे; जे आवा मार्गे
चाले छे ते पोते परमात्मा थई जाय छे.
आत्मा अने देहना भेदज्ञानवडे, चैतन्यमां एकाग्र थयेला धर्मात्मा तो आनंदथी
आह्लादित छे, ते तो चैतन्यना आनंदमां झूले छे, अनाकुळ शांतिरसना वेदनमां डुबकी
मारीने लीन थया छे; त्यां अनेक उपवासादि तपश्चरण सहेजे थई जाय छे, तेमां तेमने
खेद थतो नथी पण चैतन्यना आनंदनो विषयातीत आह्लाद आवे छे. अरे! चैतन्यना
अनुभवमां दुःख केवुं? ऋषभदेव प्रभु छ महिना सुधी ध्यानमां एवा लीन रह्या के
चैतन्यना आनंदमां वच्चे आहारनी वृत्ति ज न उठी. त्यां कांई तेमने दुःख न हतुं.