ते देहने ने रागने ज आत्मा माने ते तेनाथी छूटो क््यारे पडे? देहथी ने रागथी भिन्न,
हुं तो चैतन्यस्वरूप छुं–एवुं ज्ञान करीने तेमां एकाग्रतावडे ज जीव मुक्त थाय छे.
ज्ञानानंदस्वरूप आत्मामां एकाग्रता वगर बधुं निरर्थक छे, तेना वडे निर्वाणपद पमातुं
होवाने कारणे हुं ज मारो उपास्यदेव छुं, माराथी भिन्न बीजुं कोई मारे उपास्य नथी–
आवी वस्तुस्थिति छे. आराध्य–आराधकभावनी व्यवस्था पोताना स्वतत्त्वमां ज
समाय छे.
करे? राग करतां करतां छूटकारो (मोक्षमार्ग) थशे एम जे माने छे तेने खरेखर रागथी
छूटवानी भावना नथी. पुण्य करतां करतां मोक्षनां द्वारा खूली जशे–एम माननारने
मोक्षनी खरी भावना ज नथी, मोक्षने ते खरेखर ओळखतो पण नथी.
छोडीने स्वरूपमां ठर्या ते ज एम बतावे छे के राग छोडवानो ज भगवाननो उपदेश छे;
रागथी लाभ थाय एम जे माने ते भगवानना उपदेशने मानतो नथी.
होय तो रागनी भावना छोडीने चिदानंदस्वभावनी ज भावना कर...तेनी भावनामां
एकाग्र थईने चैतन्य–जिनप्रतिमा था...आवो परमात्मानो मार्ग छे; जे आवा मार्गे
चाले छे ते पोते परमात्मा थई जाय छे.
मारीने लीन थया छे; त्यां अनेक उपवासादि तपश्चरण सहेजे थई जाय छे, तेमां तेमने
खेद थतो नथी पण चैतन्यना आनंदनो विषयातीत आह्लाद आवे छे. अरे! चैतन्यना
अनुभवमां दुःख केवुं? ऋषभदेव प्रभु छ महिना सुधी ध्यानमां एवा लीन रह्या के
चैतन्यना आनंदमां वच्चे आहारनी वृत्ति ज न उठी. त्यां कांई तेमने दुःख न हतुं.