Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 53

background image
: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : ११ :
त्यार पछी बीजा छ महिना पण तप कर्यो. लगभग एक वर्षना उपवास थया, छतां
परिणाममां जराय खेद न हतो; आत्माना आनंदमां घणी लीनता हती. आनंदमां
लीनतावडे ज्ञानी मुक्तिने साधे छे. मुक्तिने साधतां दुख लागे तो तेणे मुक्तिना मार्गने
जाण्यो नथी. मुक्ति तो परमानंदनी प्राप्ति छे, ने तेनो उपाय पण आनंदमय छे, तेना
उपायमां गमे तेवी घोर प्रतिकूळता आवी पडे तोपण आत्माना आनंदथी आनंदित
संतोने जराय दुःख के खेद थतो नथी देहने अने संयोगने पोताथी भिन्न जाणीने जेओ
आत्मामां ज लीन थया छे तेमने दुःख केवुं? गमे तेवा बाह्य संयोगो आवी पडो पण
ज्यां बाह्य विषयो संबंधी चिंता ज नथी त्यां दुःख केवुं? चैतन्यनो स्वभाव ज आनंद
छे–‘
आनंद ब्रह्मणो रूपं’ तेना चिंतनमां दुःख केम होय? अहो! ज्ञानीने तो
आत्मस्वरूपमां अपूर्व आनंदनो अनुभव छे, पण संयोगद्रष्टिवाळा मूढ अज्ञानी जीवने
ज्ञानीना अंतरनी खबर नथी, प्रतिकूळ संयोगोथी ज्ञानीने दुःख थतुं हशे–एम ते
मूढताथी माने छे. सिंह आवीने ध्यानस्थ मुनिना शरीरने फाडी खातो होय त्यां जेने
एम लागे के “अरेरे! मुनिने महादुःख थतुं हशे” अरे मूढ! संतो तो अंतरमां
चैतन्यस्वरूपनी लीनताथी महा सुखी छे, महा आनंदी छे; शरीरने सिंह फाडी खाय
तेमां शुं थयुं? शरीरथी आत्माने भिन्न जाणीने संतो तो चैतन्यमां लीन थईने
आनंदने ज अनुभवे छे.
साधक संतो उपर उपसर्ग आवे त्यां ते दूर करवानी वृत्तिनो भाव धर्मी
भक्तोने आव्या विना रहे नहि, परंतु त्यां सामा संतोने दुःखी मानीने ते भाव नथी
आवतो, पण पोताना रागने लीधे–भक्तिभावने लीधे तेवी वृत्ति आवे छे. जेने संयोग
तरफ झूकाव थईने राग–द्वेष थाय छे तेने ज दुःख थाय छे, पण जेने संयोग तरफ झूकाव
नथी ने स्वभाव तरफ ज झूकाव छे एवा संतोने राग–द्वेष थता नथी, अने तेथी गमे
तेवा संयोगथी पण तेमने दुःख थतुं नथी, आनंदनो ज अनुभव छे; ने ए रीते
चैतन्यना आनंदमां लीन थईने ते मुक्तिने साधे छे.
ज्यां सुधी बाह्य पदार्थोमां आ मने ईष्ट अने आ मने अनिष्ट एवी राग–
द्वेषनी बुद्धिरूप कल्लोलोथी जीव चंचळ छे त्यां सुधी तेने चैतन्यना आनंदनो अनुभव
थतो नथी.
जेनुं चित्त समस्त बाह्य पदार्थोथी भिन्न पोताना ज्ञानानंदस्वरूप आत्मामां
वळ्‌युं छे ते जीव राग–द्वेषादि कल्लोलोथी रहित स्थिर छे, ने एवा स्थिर शांत चित्तवाळो
जीव ज परम आनंदमय आत्मतत्त्वने देखे छे. शांत उपयोगवाळो जीव ज पोताना
परमतत्त्वने देखे छे, बीजा जनो देखी शकता नथी.