
वेदन करे त्यारे जीवने सम्यग्दर्शन थाय छे. सम्यग्दर्शन पछी मुनिदशा के समाधि थाय
छे. सम्यग्दर्शन थतां अमुक शांति ने समाधि तो थई छे, पण हजी मुनिदशानी विशेष
कल्लोलोथी ज्ञानजळ चंचळ वर्ते छे त्यांसुधी निर्विकल्प आनंदनुं विशेष वेदन थतुं नथी.
नथी–बहारनी अनुकूळताना लक्षे जे शांतपरिणाम लागे ते खरी शांति नथी.
अंर्तस्वभावना लक्षे राग–द्वेषनो अभाव थतां ज खरी शांति होय छे. अंतर्मुख
उपयोग वखते निर्विकल्प दशामां परमात्मतत्त्व आनंद सहित स्फूरायमान थाय छे,
–प्रगट अनुभवमां आवे छे. जेम जेम आवो अनुभव वधतो जाय छे तेम तेम राग–
द्वेष छूटता जाय छे ने वीतरागी समाधि थती जाय छे. पछी बहारनी गमे तेवी
अचिंत्य आनंद छे तेने धर्मी पोते ज जाणे छे, बीजा बाह्यद्रष्टिजीवो तेने जाणता नथी.
माटे हे जीव! तुं तारा ज्ञानने अंतर्मुख स्थिर करीने तारा चैतन्यस्वरूपने आनंदथी
देख.
संसारनुं कारण छे; अने चैतन्यविषयनुं मनन करनारुं मन ते मोक्षनुं कारण छे माटे
चैतन्यस्वरूपमां मनने स्थिर करवानो द्रढ प्रयत्न करो, एम पूज्यपादस्वामीनो उपदेश
छे. (मन एटले ज्ञान)
स्वभावमां ठरे नहि. आनंद तो आत्मानो स्वभाव ज छे एटले आत्मा पोते ज
आनंदस्वरूपे परिणमे छे–आवो निर्णय करीने जे जीव अंतर्मुख थाय छे तेनुं चित्त
अविक्षिप्त थाय छे, रागादिथी ते विक्षिप्त थतुं नथी.