Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 53

background image
: १२ : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
अंतरना चैतन्यनुं निर्विकल्प वेदन न थाय त्यां सुधी तो सम्यग्दर्शन पण होतुं
नथी. संकल्प–विकल्पोथी विमुख शांतचित्त थईने चैतन्यस्वभाव तरफ झूकीने निर्विकल्प
वेदन करे त्यारे जीवने सम्यग्दर्शन थाय छे. सम्यग्दर्शन पछी मुनिदशा के समाधि थाय
छे. सम्यग्दर्शन थतां अमुक शांति ने समाधि तो थई छे, पण हजी मुनिदशानी विशेष
समाधि नथी. आत्मानुं सम्यग्ज्ञान प्रगट कर्या पछी पण ज्यांसुधी राग–द्वेषना
कल्लोलोथी ज्ञानजळ चंचळ वर्ते छे त्यांसुधी निर्विकल्प आनंदनुं विशेष वेदन थतुं नथी.
अतीन्द्रिय आत्मस्वरूपनी सन्मुखतावडे राग–द्वेषादि तरंगो शांत थई जाय छे.
चैतन्यस्वभावनी सन्मुखता वगर बीजा कोई उपायथी रागद्वेषना तरंगो शांत थता
नथी–बहारनी अनुकूळताना लक्षे जे शांतपरिणाम लागे ते खरी शांति नथी.
अंर्तस्वभावना लक्षे राग–द्वेषनो अभाव थतां ज खरी शांति होय छे. अंतर्मुख
उपयोग वखते निर्विकल्प दशामां परमात्मतत्त्व आनंद सहित स्फूरायमान थाय छे,
–प्रगट अनुभवमां आवे छे. जेम जेम आवो अनुभव वधतो जाय छे तेम तेम राग–
द्वेष छूटता जाय छे ने वीतरागी समाधि थती जाय छे. पछी बहारनी गमे तेवी
प्रतिकूळता के अनुकूळताथी पण तेनुं चित्त चलायमान थतुं नथी. स्वरूपलीनतामां जे
अचिंत्य आनंद छे तेने धर्मी पोते ज जाणे छे, बीजा बाह्यद्रष्टिजीवो तेने जाणता नथी.
माटे हे जीव! तुं तारा ज्ञानने अंतर्मुख स्थिर करीने तारा चैतन्यस्वरूपने आनंदथी
देख.
बाह्यविषयोमां वर्ततुं संकल्प सहित मन ते संसारनुं कारण छे, ने चैतन्यमां
ठरेलुं निर्विकल्प मन ते मोक्षनुं कारण छे. बाह्यविषयोनुं मनन–चिंतन करनारुं मन ते
संसारनुं कारण छे; अने चैतन्यविषयनुं मनन करनारुं मन ते मोक्षनुं कारण छे माटे
चैतन्यस्वरूपमां मनने स्थिर करवानो द्रढ प्रयत्न करो, एम पूज्यपादस्वामीनो उपदेश
छे. (मन एटले ज्ञान)
ज्यां सुख लागे त्यां ज्ञान ठरे...परमां जेने सुख लागतुं होय तेनुं ज्ञान परथी
हठीने स्वमां ठरे नहि; रागमां जेने सुख लागतुं होय तेनुं ज्ञान रागथी खसीने
स्वभावमां ठरे नहि. आनंद तो आत्मानो स्वभाव ज छे एटले आत्मा पोते ज
आनंदस्वरूपे परिणमे छे–आवो निर्णय करीने जे जीव अंतर्मुख थाय छे तेनुं चित्त
अविक्षिप्त थाय छे, रागादिथी ते विक्षिप्त थतुं नथी.
अहा! वास्तविक आनंद शुं छे तेनी पण जगतना जीवोने खबर नथी, ने
भ्रमणाथी बाह्यविषयोमांथी आनंद लेवा माटे ते तरफ ज ज्ञानने जोडे छे, एटले तेनुं