Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वीर सं. २५०१
छ रूपिया : अषाढ :
वर्ष : ३२ ई. स.
1975
अंक ९ JULY
स्वानुभूति
आत्मअनुभवथी मोटुं कोई शास्त्र आ जगतमां
नथी. समस्त शास्त्रोना संग्रहमांथी जो कस अने
फोतरांनुं पृथक्करण करवामां आवे, एटले के ज्ञान अने
राग ने बंनेनी वहेंचणी करवामां आवे, तो मात्र
स्वानुभवरसरूपी कस ज बाकी रहे छे. एटले बधाय
शास्त्रोनो रस–कस स्वानुभवमां समाय छे.
सर्वज्ञदेवे स्वानुभूतिने जिनशासन कह्युं छे.
ज्ञाननी अनुभूति ते आत्मानी अनुभूति छे,
अने ते ज जिनशासननुं विधान छे. ते अनुभूतिथी
ऊंचुं खरेखर कांई ज नथी; ते ज समयनो सार छे.
धर्मनो प्राण अने धर्मनुं जीवन एटले
स्वानुभूति. धर्मात्मानुं अंतरंग जीवनचरित्र...एटले
स्वानुभूति. मोक्षमार्ग स्वानुभूतिमां समाय छे. अहा, ते
स्वानुभूतिने अतीन्द्रिय–आनंदनी छाप लागेली छे.
साधकनुं चिह्न शुं? सिद्धप्रभु शुं करे छे?
स्वानुभूति स्वानुभूति
[नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते]