: ४६ : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
* जैन कहे:–अमने ए मान्य नथी.
पछी ते जैने कह्युं:–कर्म जीवने विकार नथी करावतुं, आत्मा पोताना, अपराधथी
ज विकारी थाय छे–एम तमे मानो तो चर्चा करीए!
* कर्मवादी कहे–ए अमने मान्य नथी.
“बस, चर्चा पूरी थई गई! ” अने कवि बनारसीदासजी बोली ऊठया–
कोउ मूरख यों कहे, राग–द्वेष परिनाम।
पुद्गलकी जोरावरी, वरते आतमराम।।
* परद्रव्य जीवने राग करावे छे–एम जेओ माने छे तेओ मोहसमुद्रने पार ऊतरी
शकता नथी.
* भाई, तारा चैतन्यना विकारी के अविकारी परिणामने करवामां तुं स्वतंत्र छो.
तारा भावोनो कर्ता थवानी स्वाधीन शक्ति तारामां छे. उत्पाद–व्यय–ध्रुवतारूप
तारुं जे सत्पणुं छे तेनो कर्ता कोई बीजो नथी.
• प्रदेशत्वगुणना अविभागअंशो केटला?
* आकाशना प्रदेशत्वना अविभागअंशो अनंतानंत छे.
* जीवना प्रदेशत्वना अविभागअंशो असंख्यात छे.
* धर्मास्ति–अधर्मास्तिना अविभागअंशो पण असंख्यात छे.
* परमाणु अने कालाणुना प्रदेशत्वमां अविभागअंशो थता नथी,
–केमके तेओ पोते स्वयं अविभागी,–एक प्रदेशी छे.
* नानामां नाना जीवना ज्ञानमां अनंतानंत अविभाग प्रतिच्छेद थाय छे, के जे
अलोकाकाशना प्रदेशो करतां पण अनंतगुणा छे. ज्ञाननो केटलो महिमा!
• जीवना प्रदेशो असंख्य छे. हवे ते असंख्यप्रदेशोमांथी एकेक प्रदेशे सर्वत्र जीव
प्रदेशो सरखा ज छे के हीनाधिक पण छे? हीनाधिकता पण होय छे. समुद्घात
वखते जीवनी दंड–प्रतर ने कपाट ए आकृति उपरथी ते नक्की थाय छे के दरेक
आकाशप्रदेशे ते जीवना सरखा प्रदेशो नथी. लोकपूरणना पूर्व–पछीना समये
जीवनुं क्षेत्र, लोकना चोथाभागथी वधारे छे, ने लोकना त्रीजाभागथी ओछुं
छे; आम