Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page  


PDF/HTML Page 53 of 53

background image
फोन नं. ३४ “आत्मधम” Regd. No. G. B. V. 10
‘आत्मधर्म’ दरमहिने हिन्दी तथा गुजरातीभाषामां प्रसिद्ध थाय छे.
‘आत्मधर्म’ शुद्ध जैनमार्गने प्रसिद्ध करीने आत्महितनी रीत बतावे छे.
आत्मधर्मनी अत्यारे हिंदी–गुजराती मळीने कुल ६१०० प्रतो छपाय छे. १०१/–
रूा. भरनार कायमी ग्राहकोनी संख्या ४१४ छे. भारत बहार परदेशोमां १३०
प्रतो जाय छे. वार्षिक लवाजम (लागत करतां अडधी किंमत) छ रूपिया भरीने
आप पण आत्मधर्मना ग्राहक परिवारमां दाखल थई जाओ....आत्मधर्मनुं
नियमित वांचन आपने अनेरी शांति आपशे. सर्वे जीवोना आत्महितने
अनुलक्षीने उत्तमशैलीथी तेनुं संपादन थाय छे.
आत्मधर्म ए मुमुक्षुओना मनोरथने पुष्ट करनारुं भारतनुं एक मात्र
पत्र छे; उत्तम कक्षानुं वीतरागी साहित्य तेना पाने पाने भर्युं होय छे.
जिज्ञासुओना सहकारथी आ पत्र संस्था मात्र अडधी किंमते आपे छे; अने तेमां
पण जिज्ञासुओना विशेष सहकार अनुसार क््यारेक वधु पानां पण आपीए
छीए. वीतरागी साहित्यनो मोटो भंडार आपणी पासे भर्यो छे ने श्री गुरुप्रतापे
नित–नवीन आवक पण थया ज करे छे. आत्मधर्ममां ते साहित्य वधु ने वधु
पीरसाय ते माटे सौना सहकारनी जरूर छे. ४०१/– रूा. आपीने आप
आत्मधर्मनी ३१०० प्रतमां एक फरमो (आठ पानां) (कुल लगभग पच्चीस
हजार पानां) आपना तरफथी वधु आपी शको छो. (अडधा खर्च तरीके रूा.
२०१/– पण स्वीकारवामां आवे छे.
आजना जमानामां तमारी लक्ष्मी वीतरागी सत्साहित्यना प्रचारमां
वपराय–तेना करतां बीजो कोई सारो तेनो उपयोग नथी. गुरुदेव पण वारंवार
कहे छे के अत्यारे तो तत्त्वज्ञाननो प्रचार थाय ने लोकोने साहित्य ओछामां ओछी
किंमते मळे–ते करवा जेवुं छे.)
सरनामुं:– आत्मधर्म कार्यालय, सोनगढ ()
आ अंकमां वधु पानां आपवा माटे नरोडाना श्री मीनाबेन भगवानदास
तरफथी रूा. ४०१/– आपवामां आव्या छे–ते बदल धन्यवाद!
प्रकाशक : श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र) जेठ
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय, सोनगढ (सौराष्ट्र) प्रत ३१००