Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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जन्मवधामणां
[राग :– पुरनो मोरलो हो राज]
जन्मवधामणां हो राज! हैडां थनगन थनगन नाचे;
जन्म्यां कुंवरी चंद्रनी धार, मुखडां अमीरस अमीरस सींचे.
(साखी)
कुंवरी पोढे पारणे, जाणे उपशमकंद;
सीमंधरना सोणले मंद हसे मुखचंद.
हेते हींचोळतां हो राज! माता मधुर मधुर मुख मलके!
खेले खेलतां हो राज! भावो सरल सरल उर झळके.....जन्म
(साखी)
बाळावयथी प्रौढता, वैरागी गुणवंत;
मेरु सम पुरुषार्थथी देख्यो भवनो अंत.
हैयुं भावभीनुं हो राज! हरदम ‘चेतन’ ‘चेतन’ धबके;
निर्मळ नेनमां हो राज; ज्योति चमक चमक अति चमके.....
जन्म
(साखी)
रिद्धिसिद्धि–निधान छे गंभीर चित्त उदार;
भव्यो पर आ काळमां अद्भुत तुज उपकार.
चंपो म्होरियो हो राज! जगमां मघमघ मघमघ म्हेके;
‘चंपा’ –पुष्पनी सुवास, आ उर मघमघ म्हेके.....जन्म