Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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ऊजवी आनंदे श्रावणनी बीजलडी
श्रावणनी बीजलडी एटले श्रावण वद बीज–प्रशममूर्ति भगवती
पूज्य बहेनश्री चंपाबेननी जन्मजयंतीनो मंगल दिवस.
तीर्थनायक श्री महावीरभगवाननो अढीहजार–वर्षीय
निर्वाणमहोत्सव सानंदोल्लास समग्र भारतवर्षमां उजवाई रह्यो छे. ते
देवाधिदेव सर्वज्ञवीतराग परमहितोपदेशी श्री जिनेन्द्रभगवाननी
दिव्यध्वनि द्वारा वहेलो परम पावन अध्यात्मप्रवाह, के जे वीर निर्वाणनी
पचीशमी शताब्दिमां लुप्तप्राय थई गयो हतो ते मंगल प्रवाहने
पुनर्जीवित करनार अध्यात्मयुगस्त्रष्टा आत्मज्ञसंत परमोपकारी पूज्य
गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनी सम्यक्त्वजननी शुद्धात्मदर्शी सातिशय विमल
वाणीना सुप्रतापथी जेमणे लघुवयमां पोतानी अंतःपरिणति
स्वरूपोन्मुखी करी, ज्ञानवैराग्यमय अमृतबोधने पोताना जीवनमां उतारी
अनुपम आत्मसाधना साधी छे; अने जेमनी धीर गंभीर निर्मळ
स्वानुभूतिमय पवित्र दशानी पूज्य गुरुदेव भरसभामां अनेक वार
गरिमापूर्ण प्रशंसा करे छे तथा ‘भगवती’ , ‘जगदम्बा’ वगेरे
महिमाद्योतक असाधारण विशेषणोथी खास विशेषित करीने जेमना
अप्रतिम आदर्श जीवन प्रत्ये समग्र मुमुक्षुसमाजने गुरुदेवे श्रद्धा, भक्ति
अने बहुमान जगाडयां छे ते प्रशांतमूर्ति भगवती पूज्य बहेनश्री
चंपाबेननो पण, पू. गुरुदेवनी साथे, आपणा मुमुक्षुसमाज उपर महान
उपकार छे.
पूज्य बहेनश्री, आपणा मुमुक्षुसमाजनुं अनुपम धर्मरत्न छे.
आत्ममंथन, सुद्रढ तत्त्वश्रद्धा अने अतीन्द्रिय आनंदस्त्रवी निजानुभूतिथी
सुसमृद्ध तेमनो पावन अंतर्वैभव गहन अने महान छे; अविचलित
चेतनाविलासथी विभूषित तेमनी अध्यात्मधारा दुर्गम छे; ख्याति–लाभ–
पूजा आदि बाह्य तरल तथा तुच्छ वृत्तिओथी अलिप्त, अति पवित्र,
सहज ज्ञानवैराग्यमय तेमनुं जीवन छे; सातिशय अंतःपुरुषार्थ द्वारा
आविर्भूत तेमनी सुविशुद्ध दशा गौरवपूर्ण छे; अने मतिनी निर्मळ
एकाग्रताथी सधायेलुं तेमनुं जातिस्मरणज्ञान पण चमत्कारपूर्ण छे. जेम
तेमनी आंतर पवित्रता–स्वानुभूतिमंडित अंतःसाधना–साधकनो आदर्श
छे, तेम तेमनुं वास्तवस्पर्शी स्मरणज्ञान अने तेना द्वारा सुस्मृत, गत
भवमां श्री सीमंधरनाथनी सभामां प्रत्यक्ष सांभळेलुं, पूज्य गुरुदेवना
भवोनुं आश्चर्यकारी महिमापूर्ण संधिवृत मुमुक्षुसमाजने महान उपकाररूप छे.