: २२ : आत्मधर्म : श्रावण : २५०१
[अहीं कमला (वसंततिलकानी पुत्री) ने माता साथे छ सगाई, भाई साथे छ
सगाई, अने सावका पुत्र साथे छ सगाई,–एम एक जीवने एक ज भवमां १८
संबंधनी कथा टीकामां लखी छे.]
(६६) संसार–परिभ्रमण पांच प्रकारनुं छे: (१) द्रव्यथी, (र) क्षेत्रथी, (३) काळथी,
(४) भवभ्रमणथी अने (प) भावसंसार.
(६७) मिथ्यात्व अने कषायथी संयुक्त जीव, अनेक प्रकारनां कर्मरूप पुद्गलोने तेमज
नोकर्मरूप पुद्गलोने समयेसमये बांधे छे तथा छोडे छे. (ते द्रव्यपरिवर्तनरूप
संसार छे. १)
(६८) आ समस्त लोकाकाशना प्रदेशोमां एवो कोई पण प्रदेश नथी के ज्यां सर्वे जीवो
घणीवार जन्म्या तथा मर्या न होय. (आ क्षेत्रपरिवर्तनरूप संसार छे. २)
(६९) उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी काळना प्रथम समयथी मांडीने छेल्ला समय पर्यंत
अनुक्रमे बधा समयोमां संसारीजीव जन्मे छे तथा मरे छे. (आ
काळपरिवर्तनरूप संसार छे. ३)
(७०) संसारीजीव नरकादि चारेगतिमां जधन्यस्थितिथी मांडीने उत्कृष्टस्थिति पर्यंत
सर्वे स्थितिमां ग्रैवेयक सुधी जन्मे छे. (आ भवपरिवर्तनरूप संसार छे. ४)
(७१) भावसंसारमां वर्ततो संज्ञी जीव स्थितिबंधना निमित्तभूत तथा
अनुभागबंधना निमित्तभूत विविध कषायभावोरूपे परिणमे छे. (ते
भावपरिवर्तनरूप संसार छे. प)
(७र) ए प्रमाणे जेमां अनेक दुःखो भरेला छे एवा पंच प्रकारना परिभ्रमणरूप
संसारमां मिथ्यात्वना दोषने लीधे जीव अनादिकाळथी भ्रमण करे छे.
(७३) आ प्रमाणे संसारनुं स्वरूप जाणीने, सर्वप्रकारना उद्यम वडे मोहने छोडीने, हे
भव्य जीवो! तमे पोताना ते शुद्ध ज्ञानस्वरूप आत्माने ध्यावो के जेथी
संसारभ्रमणनो नाश थाय.
पंचविध छे भ्रमण ज्यां दुःखरूप संसार;
मिथ्या तम–निजदोषथी भमतो जीव अपार.
(त्रीजी संसार–अनुप्रेक्षा पूरी थई.) [लेखमाळा: चालु]
मिथ्यात्व आदिक भावने चिरकाळ भाव्या छे जीवे,
सम्यक्त्वआदिक भाव रे! भाव्या नथी पूर्वे जीवे.
– श्री कुंदकुंदस्वामी