Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २५०१ आत्मधर्म : २१ :
वळी कोईने तो स्त्री दुष्ट छे; कोईनो पुत्र दुर्व्यसनमां पडेलो छे, कोईना
बंधुजनो दुश्मन जेवा छे अने कोईनी पुत्री दूराचारिणी छे. कोईनो सुपुत्र मरी
जाय छे, कोईनी वहाली स्त्री मरी जाय छे, अने कोईना घर–कुटुंब वगेरे
अग्निमां बळी जाय छे.
(पप) ए रीते मनुष्यगतिमां अनेक प्रकारनां दुःखोने सहन करतो होवा छतां पण
जीव धर्ममां बुद्धि जोडतो नथी अने पापरंभने छोडतो नथी.
(प६) धनसहित होय ते तो निर्धन थई जाय छे, वळी धनहीन होय ते ऐश्वर्यवान
बनी जाय छे; राजा होय ते सेवक थई जाय छे ने वळी सेवक होय ते राजा थई
जाय छे.
(५७) कर्मना विपाकने वश, जे शत्रु होय ते पण मित्र थई जाय छे, तेमज जे मित्र
होय ते शत्रु बनी जाय छे,–एवो ज संसारनो स्वभाव छे.
[देवगतिनां दुःखोनुं वर्णन]
(प८) वळी संसारमां भमतां जीव क््यारेक देव पण थाय तो त्यांय विशेष ऋद्धिवाळा
देवोनी ऋद्धि–संपत्ति देखीने तेने मानसिक दुःख थाय छे.
(प९) विषयोनी तृष्णाने लीधे महर्द्धिक देवोने पण ईष्टवियोगनुं दुःख थाय छे. अरेरे,
संसारमां जेनुं सुख विषयोने आधीन छे तेने तृप्ति क््यांथी थाय?
(६०) शारीरिकदुःख करतां मानसिकदुःख घणुं आकरुं होय छे. मानसिक दुःखवाळा
जीवने विषयो पण दुःखदायक थई पडे छे.
(६१) मनोहर विषयो वडे देवोने जे सुख देखाय छे ते पण विचार करतां दुःख ज छे;
केमके विषयोने वश जे सुख छे ते पण दुःखनुं ज कारण छे.
(६र) ए रीते परमार्थथी विचार करतां, सर्व प्रकारे असार अने घोर दुःखना सागर
एवा संसारमां शुं कोईने क््यांय जरा पण सुख छे? –ना.
(६३) हे प्राणीओ! तमे मोहनुं माहात्मय तो देखो! –के दुष्कृत कर्मने वश राजा पण
मरीने अशुची–विष्टामां कीडो थाय छे, अने ते विष्टामां ज ते रति करे छे.
(६४–६५) देखो संसारनी विचित्रता! जे पुत्र हतो ते भाई थयो; ते ज भाई दीयर
पण थयो; माता ते ज शोक्य थई अने पिता ते पति थयो.–एक जीवने एक
भवमां ज आटला संबंध थाय छे; तो धर्मरहित जीवोने अन्य भवनुं तो कहेवुं ज शुं?