उदराग्नि थी बळतो थको तीव्र दुःख पामे छे.
(४४) पूर्वोक्त प्रकारे तिर्यंच योनिमां जीव अनेक प्रकारनां दुःखो सहन करे छे. मांडमांड
ते तिर्यंचगतिमांथी नीकळीने मनुष्य थाय तो ते लब्धि–अपर्याप्त थाय छे, एटले के
शरीरादिनी रचना पूरी थया पहेलांं ज मरी जाय छे.
अत्यंत संकोचाईने रहे छे, तथा योनिमांथी बहार नीकळतां पण तीव्र दुःखने पामे छे.
(४६) गर्भमांथी नीकळ्या पछी, बाल्यअवस्थामां ज माता–पिता मरी जतां बीजानुं
एठुं–जुठुं खाईने जीवे छे, ए रीते भीखारी थईने घणा दुःखमां काळ गुमावे छे.
(४७) आ लोकमां सर्व जीवो पोताना दुष्कर्मने वश पापना उदयथी आवा दुःखो
भोगवे छे, छतां फरीथी पाछा पाप ज करे छे, कोई पुण्यउपार्जन करता नथी.
(४८) जे सम्यग्द्रष्टि छे, व्रतधारी छे, उत्तमक्षमादिरूप उपशमभाव सहित छे तथा
पोताना दोषनी निंदा–गर्हणा सहित छे–एवा कोई विरला जीवो ज पुण्य उपार्जन करे छे.
(४९) आ संसारमां पुण्यवंत जीवोने पण ईष्टनो वियोग तथा अनिष्टनो संयोग थतो
देखाय छे. जुओ, अभिमान सहित एवो भरत चक्रवर्ती पण पोताना नाना भाई
बाहुबलीवडे पराजीत थयो.
(प०) आ संसारमां सकल विषय–सामग्रीनो योग महापुण्यवंतने पण सर्वांगपणे
मळतो नथी,–बधी ज ईष्टसामग्री महा पुण्यवंतने पण नथी मळती; केमके संसारमां
एवुं कोई पुण्य ज नथी के जेनाथी बधुं ज मनोवांछित मळे, ने सर्वदा रहे.
(प१–प४) कोई मनुष्यने तो स्त्री नथी; कोईने स्त्री छे तो पुत्रनी प्राप्ति नथी; अने
कोईने पुत्रनी प्राप्ति छे तो शरीरमां रोग छे. वळी जो कोईने नीरोगी शरीर होय तो
धन–धान्यनी प्राप्ति नथी; अने जो धन–धान्यनी पण प्राप्ति थई जाय तो मरण जल्दी
आवी पडे छे.