: श्रावण : २५०१ आत्मधर्म : १९ :
कोई दुःखो वडे जेनुं माप न थई शके एवा अनुपम, पांचप्रकारना विविध
दुःखोने ते भोगवे छे.
(३प) असुरदेवो द्वारा उपजावेलुं, पोताना शरीरथी उपजेलुं, अनेक प्रकारनुं मानसिक,
नरकक्षेत्रथी उत्पन्न थयेलुं अने नारकीओद्वारा परस्पर करवामां आवेलुं, –आ
रीते पांचप्रकारना भयंकर दुःखोने नारकी जीव भोगवे छे.
(३६) नरकमां तेने छेदीने तल–तल जेवडा कटका करी नांखे छे, अने वळी ते तल–तल
जेवडा टुकडाने भेदी नांखे छे, भयानक वज्राग्निमां तेने बाफी नांखे छे अने
दुर्गंधी परूना कुंडमां फेंकी दे छे.
(३७) एवा जे अनेक दुःखो नरकमां एकसमये जीव सहन करे छे ते बधा दुःखोनुं
वर्णन हजार जीभ वडे पण थई शकतुं नथी.
(३८) नरकक्षेत्रनो स्वभाव ज एवो छे के त्यांनी बधी वस्तुओ अशुभ अने
दुःखदेनारी छे; अने नारकी जीवो सदाकाळ एकबीजा उपर कृपित रह्या करे छे–
एटले दुःख दीधा करे छे.
(३९) अन्य भवमां जेओ आ जीवना स्वजन हता तेओ पण नरकमां अत्यंत क्रोधी
थईने हणे छे. –ए प्रमाणे नरकमां तीव्रविपाकना दुःखने जीव घणाकाळ सुधी
सहन करे छे. (नारकीने पांच करोड, अडसठ लाख, नव्वाणुं हजार पांचसो
चोराशी ५, ६८, ९९, ५८४ रोगो अने बीजा अनेक दुःखोनो तीव्र विपाक
होवानुं आ गाथानी संस्कृत टीकामां लख्युं छे.)
[तिर्यंचगतिनां दुःखोनुं वर्णन]
(४०) जीव ते नरकमांथी नीकळीने अनेक प्रकारनां तिर्यंचपणे जन्मे छे, अने त्यां पण
गर्भअवस्थामां ज छेदन वगेरे दुःखो पामे छे.
(४१) वळी बीजा तिर्यंचो तेने खाई जाय छे, दुष्ट शिकारी वगेरे मनुष्यो तेने हणी
नांखे छे, एम सर्वत्र संतप्त वर्ततो थको ते भयानक दुःखोने सहन करे छे.
(४र) वळी ते तिर्यंचो परस्पर एक बीजाथी भक्षित थईने दारूण दुःखने पामे छे.
अरे, जेना गर्भमां उपज्यो एवी माता पोते पण ज्यां पुत्रने खाई जाय, त्यां
बीजुं कोण रक्षा करे? (–आवो अशरण संसार छे)