Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : श्रावण : २५०१
* रसना–ईन्द्रियवडे आत्मा जणाय? –ना, केमके आत्मामां रस नथी, आत्मा अरस छे.
* नासिका–ईन्द्रियवडे आत्मा जणाय? ना, केमके आत्मामां गंध नथी, आत्मा
अगंध छे.
* आंखवडे आत्मा जणाय? ना, केमके आत्मामां रूप नथी, आत्मा अरूप छे.
* शब्दवडे आत्मा जणाय? ना, केमके आत्मामां शब्द नथी, आत्मा अशब्द छे.
* मनवडे आत्मा जणाय? ना, केमके अतीन्द्रिय आत्मा एकला अनुमानगोचर
थतो नथी.
* आकारवडे आत्मा जणाय? ना, केमके असंख्यप्रदेशी आत्मानो कोई निश्चत
आकार नथी.
* भेदवडे आत्मा जणाय? ना; केमके आत्मअनुभूतिमां द्रव्य–गुण–पर्यायना भेद नथी.
* चेतनावडे आत्मा जणाय? हा...केमके आत्मा पोते पोतानी चेतनास्वरूप छे.
स्पर्शनादि ईन्द्रियोवडे आत्मा जणाय–एम जे माने छे ते आत्माने स्पर्शादि
वाळो माने छे एटले देहने ज आत्मा माने छे, तेथी देहातीत एवा अतीन्द्रिय आत्मानी
स्तुति करतां तेने आवडती नथी. माटे कुंदकुंदस्वामी कहे छे के अतीन्द्रिय स्वानुभूतिवडे
ज सर्वज्ञनी स्तुति ने सर्वज्ञना मार्गनी उपासना थई शके छे; अने एवी स्तुति करनारो
जीव जीतेन्द्रिय छे. ईन्द्रियथी जुदो पडीने अतीन्द्रिय चेतनारूपे ते परिणम्यो छे. –एवो
धर्मात्मा जीव कहे छे के–अहो वीरनाथ सर्वज्ञदेव! आपना शासनमां आवी
अतीन्द्रियचेतना पामीने अमे आपनी परमार्थस्तुति करीए छीए.
पुद्गलमय ईन्द्रियो जेनो स्वभाव नथी एवो अतीन्द्रिय आत्मा पोते स्वयमेव
ज्ञानस्वरूप छे, ते पोताना अतीन्द्रियज्ञानरूपे स्वयमेव परिणमतो थको जाणे छे,
ईन्द्रियो वडे ते जाणतो नथी. ज्ञानने अने ईन्द्रियोने (आत्माने अने शरीरने) अत्यंत
भिन्नता छे, तो ज्ञान ईन्द्रियोवडे केम जाणे? जाणवानो स्वभाव ज्ञाननो छे, ईन्द्रियोनो
नहि. एटले परमार्थे तो, ईन्द्रियोने निमित्त बनावीने जाणे–एवो परालंबी
ज्ञानस्वभाव नथी; एटले ईन्द्रियज्ञान पण जीवनो स्वभाव नथी,
अतीन्द्रियज्ञानस्वभावी आत्मा छे–ते परमार्थ छे. –आवा परमार्थआत्माने
चेतनालक्षणवडे हे भव्य! तुं जाण.
* * * * *
आत्मा ईन्द्रियोवडे जाणे–एवो नथी; तेनो स्वभाव अतीन्द्रियज्ञानरूप छे. जेम
पुद्गलपिंडनो आत्मामां अभाव छे, तेथी आत्मा शरीरादि पुद्गलपिंडनो कर्ता नथी;
तेम पुद्गलपिंडरूप ईन्द्रियोनो आत्मामां अभाव छे एटले ते ईन्द्रियो आत्माना
ज्ञाननी