Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : श्रावण : २५०१
निश्चय, एवा निश्चयपूर्वक अनुमानरूप व्यवहार साचो होय; पण निश्चय वगरनो
एकलो व्यवहार जेम सत्य नथी होतो तेम प्रत्यक्ष वगरनुं एकलुं अनुमान ते पण सत्य
नथी होतुं. अहो, जैनशासननी अनेकान्तशैली अने निश्चय–व्यवहार कोई अलौकिक छे!
* * *
धर्मीनी अनुभूतिनां रहस्य ऊंडा छे. गुरुदेव अत्यंत प्रमोदपूर्वक वारंवार
सम्यग्दर्शननी गंभीरता बतावीने कहे छे के अहा, अनुभवनी क्षणे द्रव्य–गुण–
पर्यायना कोई भेद द्रष्टिमां रहेता नथी, परम आनंद सहित एकलुं चैतन्यतत्त्व
अखंडपणे प्रकाशे छे–वेदाय छे.
‘अलिंगग्रहण’ ना २० अर्थोमांथी छेल्ला त्रण बोलमां गुण–पर्याय ने द्रव्य ए
त्रणेयना भेदना विकल्पथी पार अभेदरूप आत्मानी अनुभूतिनुं स्पष्ट वर्णन
आचार्यदेवे अलौकिक रीते समजाव्युं छे. गुणना भेदवडे आत्मवस्तुनो अवबोध थतो
नथी, माटे गुणभेदरूप लिंगने आत्मा ग्रहतो नथी–स्पर्शतो नथी. ज्ञान–दर्शन–
चारित्ररूप गुणना भेदो ते आत्मा नथी–एम समयसारनी सातमी गाथामां कह्युं; तेथी
कांई एवो अर्थ नथी के आत्मामां ज्ञान–दर्शन–चारित्र वगेरे गुण–पर्यायो नथी.
गुणोथी अभेद आत्मा छे–तेमां भेद पाडवाथी आत्मा अनुभवमां आवतो नथी,
अनुभूतिमां भेद देखातो नथी, अभेदपणे ज परमार्थ आत्मा अनुभवाय छे. जेम आ
बोलमां गुणभेदनो निषेध कर्यो, ए ज रीते शुद्धपर्यायमां पण समजवुं. ‘आ शुद्धपर्याय
ने आ आत्मा’ एवो भेद धर्मीनी द्रष्टिमां नथी, तेथी कह्युं के शुद्धपर्यायथी तेनुं ग्रहण
थतुं नथी, पर्यायना भेदने ते स्पर्शतो नथी. पछी छेल्ला बोलमां, परमार्थरूप आत्मानी
अनुभूतिथी जे पर्याय थई ते शुद्धपर्याय आत्मा ज छे, –एम अभेदद्रष्टिथी आत्माने
शुद्धपर्याय कह्यो छे.
जेम गुणना भेदमां अभेद आत्मा अनुभवातो नथी, तेम पर्यायना भेदमां
अभेद आत्मा अनुभवातो नथी, तेम ज ‘द्रव्य छुं– द्रव्य छुं’ एवा भेदवडे पण अभेद
आत्मा अनुभवातो नथी–तेथी तेने द्रव्यथी पण अनालिढ एवो शुद्धपर्याय कह्यो. आम
छेल्ला त्रण बोल द्वारा गुण–पर्याय ने द्रव्यना बधा भेदोना विकल्पथी पार शुद्धआत्मा
बताव्यो.