: ४४ : आत्मधर्म : श्रावण : २५०१
चोथाकाळनी कोई धर्मसभामां बेठा होईए तेवी प्रसन्नता थाय छे. चोथो बोल
समजतां चोथुं गुणस्थान थई जाय छे.
जीवोए मात्र रागप्रवृत्ति करीने भ्रमणाथी एम मानी लीधुं छे के में ज्ञानीनी
उपासना करी. पण चोथी गाथामां कुंदकुंदस्वामी कहे छे तेम, जीवे पोते आत्मज्ञान पूर्वे
कर्युं नथी ने आत्माने जाणनारा ज्ञानीनी साची उपासना पण तेणे पूर्वे कदी करी नथी.
–तेथी तेने आत्मप्राप्ति दुर्लभ छे. एकला रागवडे कांई ज्ञानीनी उपासना थती नथी.
ज्ञानी अतीन्द्रियअनुभूतिवाळा छे, ने तेनी खरी ओळखाण पण कंईक अंशे
अतीन्द्रियभाववडे ज थाय छे. एवी ओळखाणपूर्वकनी उपासना ते साची उपासना छे;
एवी सम्यक् उपासना करनार जीव पोते पण अवश्य आत्माने जाणीने मोक्षसाधक
थाय छे.
“अहा, धर्मात्मानी अनुभूतिनो महिमा सांभळीने, अने एवी अनुभूतिवाळा
धर्मात्माओने नजर देखीने आत्मार्थीजीवोने घणी ज प्रसन्नता थाय छे. कोई कहे–
रत्नोनो महिमा केम न कर्यो! अरे भाई, जगतना रत्नो जे अनुभूतिना चरणे अर्पाई
जाय छे–तेनो महिमा देखो. समवसरणनो महिमा नथी, सर्वज्ञनो महिमा छे,
समवसरणने लीधे कांई सर्वज्ञनो महिमा नथी, पण सर्वज्ञने लीधे समवसरणनी शोभा
छे. तेम जे वस्तुवडे ज्ञानीनी भक्ति करवामां आवे छे, महिमा ते वस्तुनो नहि पण
तेना वडे जेनी भक्ति करवामां आवे छे तेनो महिमा छे, अने तेनी ओळखाणपूर्वक ज
भक्तिनो साचो लाभ मळे छे. धर्मना मंगलउत्सवोमां एवो लाभ लेवो ते मुमुक्षुओनुं
काम छे. –जय महावीर.
पू. बेनश्री चंपाबेनना मंगलजन्मोत्सवनी खुशालीमां, आ
अंकमां प्रशमरससूचक शांत मुद्रावाळुं तेओश्रीनुं जे सुंदर रंगीन चित्र
आपवामां आव्युं छे, तेना खर्चनी रकम रूा. ६७१/– सोनगढवाळा श्रीमती
लीलावतीबेन (ध. प. वृजलाल नागरदास मोदी–मुंबई) तरफथी
आपवामां आव्युं छे–ते बदल धन्यवाद. (आ उपरांत आत्मधर्म–
बालविभागनी निबंधयोजनामां निबंध लखनार भाई–बहेनोने
रजतचंद्रको पण तेमना तरफथी आपवामां आव्या छे.)
आ अंकमां वधु पानां छापवा माटे रूा. ४०१/– वासंतीबेन
गुणवंतराय प्रेमचंद भायाणी लाठीवाळा तरफथी आपवामां आवेल छे.
धन्यवाद.