: श्रावण : २५०१ आत्मधर्म : ४३ :
छे. ज्ञान कांई शब्दोमांथी नथी आवतुं. पदार्थो अनंत गुण–पर्यायथी अगाध गंभीर
स्वभाववाळां छे, ने तेमनुं ज्ञान पण एवुं अगाधस्वभाववाळुं गंभीर छे. रागवडे
एनो पार पमाय तेवुं नथी.
* चोथा गुणस्थाननी परिणतिनो राग वीतरागी देव–गुरु–शास्त्रने अनुसरे एवो होय
छे; पण कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रने अनुसरे एवो कोई राग त्यां होतो नथी. ए रीते
छठ्ठागुणस्थाने मुनिनी रागपरिणति अहिंसादि महाव्रतने अनुसरे एवी होय, परंतु
हिंसादि अव्रतनी प्रवृत्तिने अनुसरे एवी रागपरिणति त्यां होय नहि. शुद्धताअनुसार
रागपरिणतिनो अभाव थतो जाय छे.
* अहो, कुंदकुंदाचार्यदेवे साक्षात् तीर्थंकरभगवानने भेटीने, अने निजआत्मवैभव
खोलीने, वीरप्रभुनी परंपरानो जे मार्ग आ भरतक्षेत्रमां टकावी राख्यो छे ते सर्वे
मुनिजनोने संमत छे; त्यारपछीना सर्वे आचार्यो तेमने अनुसरे छे. बधा जैन–आचार्य
मुनिवरोनो एक ज मोक्षमार्ग छे. कांई जुदा जुदा आचार्योए जुदो जुदो मार्ग नथी
कह्यो. एक कुंदकुंदाचार्यनी वात समजे, के समन्तभद्राचार्यनी वात समजे–कोई पण
आचार्यनी वात समजतां बधा आचार्योनो अभिप्राय तेमां आवी जाय छे. वीरप्रभुनी
परंपराना बधा आचार्योनो मत एक छे, तेमां क््यांय विरुद्धता नथी,
एक कुंदकुंदस्वामीना शासनमां बधा आचार्योनो अभिप्राय शुं नथी समाई जतो?
–समंतभद्रस्वामी वगेरे बधा आचार्योनो मत पण कुंदकुंदस्वामीना अभिप्रायअनुसार
ज छे, तेनाथी कांई विपरीत नथी. तो पछी ‘कुंदकुंदस्वामीको महत्त्व देनेसे अन्य
आचार्योंका बलिदान हो जाता है’ ए वात क््यां रही? कुंदकुंदस्वामीना महत्त्वमां अन्य
आचार्योनुं बलिदान नथी थतुं परंतु बधा आचार्योना हृदयनुं रहस्य तेमां आवी जाय
छे. अहो, भरतक्षेत्रमां वीरप्रभुनुं शासन कहो, के कुंदकुंदप्रभुनुं शासन कहो–एमां कांई
ज फेर नथी. महावीरभगवाननी जेम ज कुंदकुंदादि भगवान पण मंगळरूप छे. अहो,
तेमनो उपकार अपार छे.
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‘ईन्द्रियगम्य–चिह्नो वडे ज्ञानी ओळखाता नथी.
रागथी पार एवी तेमनी अनुभूति अतीन्द्रियज्ञानथी ज ओळखाय छे. ’
अलिंगग्रहणना चोथाबोलमां ज्यारे ज्यारे गुरुदेव आ अद्भुत न्यायनुं
आत्मस्पर्शी विवेचन करे छे त्यारे त्यारे पू. बेनश्री–बेन पण खूब ज प्रमोदपूर्वक खीली
ऊठे छे, ने जाणे