Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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समवसरण–जिनवर तणो, दीधो द्रष्ट चितार;
उरमां अमृत सींचीने, कर्यो परम उपकार.
* * *
सीमंधर–दरबारना, ब्रह्मचारी भडवीर;
भरते भाळ्‌या भाग्यथी, अतिशय गुणगंभीर.
* * *
सीमंधर–कुंदनी रे के वात मीठी लागे साहेलडी,
अंतरना भावमां रे के उज्जवळता जागे साहेलडी;
खम्मा मुज मातने रे के अंतर उजाळ्‌यां साहेलडी,
भव्योनां दिलमां रे के दीवडा जगाव्या साहेलडी.
* * *
“अमे अमारा आत्मानुं करवा आव्या छीए (अर्थात् अमने
आ बधुं उपाधि लागे छे).” –पू. बहेनश्री चंपाबेन
“बेन! लोकोने भाव थाय,...तमारे जोया करवुं,...तमारे शुं छे?
...लोकोने (जन्मदिवस ऊजववाना) भाव तो थाय ने! मारा हिसाबे
तो लोको जे कंई करे छे ते (पण) ओछुं छे.” –पू. गुरुदेव