Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २५०१ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वीर सं. २५०१
छ रूपिया : श्रावण :
वर्ष ३२ ई. स. 1975
अंक १० AUGUST
• र्धमात्मानो उत्सव •
धर्मात्मानो उत्सव एटले आराधकजीवनो उत्सव,
आराधकजीवनो उत्सव एटले आराधनानो ज उत्सव.
ए उत्सव उजवतां आराधक जीवो प्रत्ये ने आराधना प्रत्ये बहुमान
जागे, पोताने आराधनानो लाभ थाय ने तेमां वृद्धि थाय–ते प्रयोजन
होय छे.
जेम जिनेन्द्रोनां पंचकल्याणक उत्सवो घणा जीवोने आराधनाना लाभनुं
निमित्त थाय छे; अने ते लाभ, मात्र रागवडे नहि परंतु ते वखते
तेमना गुणोनी ओळखाणनो जे रागथी अधिक ज्ञानभाव वर्ते छे तेने
लीधे थाय छे, तेथी ज ते सम्यक्उत्सव छे. ईन्द्रने जन्मकल्याणक वगेरे
उत्सवो वखते रागथी अधिक, गुणोनी सम्यक् ओळखाणनुं बळ छे ते ज
तेना उत्सवने मंगळरूप बनावे छे. आ रीते धर्मात्माना गुणनी
ओळखाण, अने तेवा गुणोनी पोतामां उपलब्धि ते धर्मात्माना उत्सवनुं
सम्यक् फळ छे. (
वन्दे तद्गुणलब्धये)
श्री गुरुप्रतापे आपणने वारंवार एवा सम्यक्उत्सवो उजववानुं भाग्य
मळे छे: श्रावण वद बीजे ज्ञानचेतनासंपन्न पू. बेनश्री चंपाबेननो एवो
मंगल उत्सव आवी रह्यो छे. आवो साधर्मीओ! राग–द्वेषथी पार
एमनी ज्ञानचेतनाने ओळखो, तेनुं बहुमान करो ने राग–द्वेषथी दूर
थईने एवी ज्ञानचेतनारूप परिणमो. ए ज धर्मात्माना आशीष छे...ने
ए ज तेमनो उत्सव छे.
(– ब्र. ह. जैन)