आराधकजीवनो उत्सव एटले आराधनानो ज उत्सव.
जागे, पोताने आराधनानो लाभ थाय ने तेमां वृद्धि थाय–ते प्रयोजन
होय छे.
जेम जिनेन्द्रोनां पंचकल्याणक उत्सवो घणा जीवोने आराधनाना लाभनुं
निमित्त थाय छे; अने ते लाभ, मात्र रागवडे नहि परंतु ते वखते
तेमना गुणोनी ओळखाणनो जे रागथी अधिक ज्ञानभाव वर्ते छे तेने
लीधे थाय छे, तेथी ज ते सम्यक्उत्सव छे. ईन्द्रने जन्मकल्याणक वगेरे
उत्सवो वखते रागथी अधिक, गुणोनी सम्यक् ओळखाणनुं बळ छे ते ज
तेना उत्सवने मंगळरूप बनावे छे. आ रीते धर्मात्माना गुणनी
ओळखाण, अने तेवा गुणोनी पोतामां उपलब्धि ते धर्मात्माना उत्सवनुं
सम्यक् फळ छे. (
मळे छे: श्रावण वद बीजे ज्ञानचेतनासंपन्न पू. बेनश्री चंपाबेननो एवो
मंगल उत्सव आवी रह्यो छे. आवो साधर्मीओ! राग–द्वेषथी पार
एमनी ज्ञानचेतनाने ओळखो, तेनुं बहुमान करो ने राग–द्वेषथी दूर
थईने एवी ज्ञानचेतनारूप परिणमो. ए ज धर्मात्माना आशीष छे...ने
ए ज तेमनो उत्सव छे.