दसलक्षणी मैं धर्म चाहूं महा हर्ष उछावसों,
मैं साधु जनको संग चाहूं, प्रीति मनवचकायजी,
आराधना उत्तम सदा चाहूं सूनो जिनरायजी.
Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).
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