Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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* पर्युषणपर्व......उत्तमक्षमानुं आराधन *
श्री जिनशासननी मंगलछायामां देव–गुरु–धर्मनी भक्तिपूर्वक
अने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी भावनापूर्वक दशलक्षणी–पर्युषणपर्व
भारतभरमां आपणे सौए आनंदथी उजव्या...वीरनाथनुं वीतरागी
शासन धार्मिकभावनाओनी झळकी उठयुं. आ वीतरागी पर्वनी पूर्णता
प्रसंगे परम भक्तिपूर्वक देव–गुरु–शास्त्र प्रत्ये, तथा अत्यंत
धर्मवात्सल्यपूर्वक समस्त साधर्मीजनो प्रत्ये हार्दिक क्षमापना चाहुं छुं.
वीरनाथप्रभुना निर्वाणना अढीहजारवर्षनी पूर्णतानुं जे महान
वर्ष आपणे उजवी रह्या छीए ते वर्षनुं आ मंगल पर्व आपणने सदाय
आराधनानो उत्साह तथा प्रेरणा आप्या करो, धर्मलाभ सौने थाओ, ने
सर्वत्र आनंदमय धर्मप्रेमनुं मधुरुं वातावरण प्रसरी रहो–एम प्रार्थीए
छीए.
अहा, धन्यभाग्य छे के आजे आपणने वीरनाथप्रभुनो मार्ग
मळ्‌यो छे...तेमनी ज वाणीनुं रहस्य आजे गुरुदेव द्वारा आपणने प्राप्त
थाय छे...अने ते ज वीरवाणी ‘आत्मधर्म’ मां पीरसाय छे. देव–गुरु–
धर्मना महिमाने अने तेमना मार्गने प्रसिद्ध करवानुं कार्य आत्मधर्म
आज ३२ वर्षोथी करी रह्युं छे, ने हजारो मुमुक्षुओ गौरवपूर्वक तेनो
लाभ लई रह्या छे...तेना द्वारा भारतना हजारो मुमुक्षुओनो एक सुंदर
साधर्मी–परिवार रचाई गयो छे.
मुमुक्षुने पोतामां कषाय नथी गमतो ने शांति गमे छे, एटले
जेम पोतामां धर्म वहालो छे, तेम बहारमां साधर्मीओ पण तेने एवा
ज वहाला छे. ‘आ मारा साधर्मी छे’ एटली मात्र हृदयनी ऊर्मि पण
गमे तेवा कषायभावने तोडी नांखवा समर्थ छे. साधर्मिकताना स्नेहमां
दुन्यवी प्रसंगो अंतराय करी शकता नथी. क्षमा अने धर्मप्रेमना शांत
भाववाळुं शस्त्र, परम अहिंसक होवा छतां सामाना हृदयने एवुं वींधी
नांखे छे के ते वश थई जाय छे...ने परस्पर एकबीजाना
आराधकभावनी प्रशंसा–प्रेम–प्रोत्साहनवडे मित्रतानुं अनोखुं
वातावरण सरजी दे छे. सौना हृदयनी मधुर वीणा एकतान थईने गुंजी
ऊठे छे के–
आराधना जिनधर्ममां अद्भुत आनंदकार;
सर्व जीवमांं मित्रता, वेरभाव नहि क््यांय.