Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २५०१ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम
वीर सं. २५०१
छ रूपिया : भादरवो :
वर्ष ३२ ई. स. 1975
अंक ११ SEPT.
मंगल
चुकशो
अवसर नहीं
भगवान महावीरप्रभु दिव्यध्वनि वडे रत्नत्रय–तीर्थनुं प्रवर्तन
करीने मुक्तिपुरीमां पधार्या...अढीहजारवर्ष ए वातने वीती गया...तेनो
भव्यमहोत्सव आ आखाय वर्ष दरमियान आपणे हर्षानंदपूर्वक ऊजवी
रह्या छीए...जैन समाजमां जागृतीनो एक जुवाळ आव्यो छे...ने
महावीरशासन आजेय सर्वत्र केवुं चाली रह्युं छे–ते सर्वत्र देखाय छे.
महावीरभगवान उपर आखुं जगत जाणे फिदा–फिदा छे.
हवे तो वार्षिक–उत्सव पूर्णता तरफ पहोंचवानी तैयारी छे:
अहा, आवो उत्सव आपणा जीवनमां आव्यो....आपणे वीरना भक्त
अने वारसदार बन्या...मोंघी त्रसपर्याय, तेमांय संज्ञीपणुं ने मनुष्यपणुं,
भारत जेवो उत्तम देश, श्रावकनुं कूळ ने जैनधर्मना देव–गुरु, तेमां वळी
आत्मानुं स्वरूप समजावनारी जिनवाणीनुं श्रवण–समयसार जेवा
परम अध्यात्मशास्त्रो–आटली बधी दुर्लभ–दुर्लभ वस्तुओ अत्यारे मळी
छे, आत्महितनी बुद्धि पण जागी छे...तो हे जीव! प्रभुना शासनमां
तारा आत्महितना आ महान अवसरने चुकीश नहि...सम्यग्ज्ञान वडे
परमसुखनी प्राप्ति करी लेजे. –एम श्रीगुरुनी प्रेरणा छे.