Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : भादरवो : २५०१
भादरवा सुद पांचम: आजथी दशलक्षणी पर्युषणपर्व शरू थाय छे तेमां आजे
उत्तमक्षमानो पहेलो दिवस छे. उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप,
त्याग, आकिंचन्य अने ब्रह्मचर्य एवा दश उत्तम वीतरागीधर्मोने हे जीव! तुं
भक्तिपूर्वक जाण.
आ दशे धर्मो ते चारित्रना प्रकार छे. तेनी आराधना मुनिवरोने होय छे; ने
धर्मी गृहस्थोने सम्यग्दर्शनपूर्वक तेनी एकदेश आराधना होय छे. प्रथम तो क्रोध
वगरनो शांत–क्षमाभावी आत्मा छे–तेनुं भान थाय एटले सम्यग्दर्शन थाय; तेने
विशेष वीतरागता थतां, क्रोधरहित एवो क्षमाभाव प्रगटे छे के–तिर्यंच मनुष्य वगेरे
द्वारा घोर उपद्रव थाय तोपण पोतानी क्षमानी शांतिथी डगता नथी ने क्रोध करता नथी.
शरीर उपर घोर उपसर्ग थतो होय, घोर निंदा थती होय, घाणीमां पीलाता होय–छतां
उपसर्ग करनार प्रत्ये क्रोधनी वृत्ति न जागे, पोते पोताना आत्मानी वीतरागी शांतिना
वेदनमां रहे तेने उत्तमक्षमाधर्मनी आराधना होय छे.
जुओ, आवो क्षमाधर्म अने आवा धर्मनी उपासनारूप साचा पर्युषणपर्व
आजथी शरू थाय छे. आवा धर्मोनुं स्वरूप वीतरागी देव–शास्त्र–गुरु पासे ज होय छे.
जेना देव–शास्त्र–गुरु खोटा होय त्यां साचा धर्मोनी उपासना होती नथी एटले धर्मनी
पर्युषणा होती नथी. अरे, क्रोध अने चैतन्यनी भिन्नतानुं भेदज्ञान ज्यां न होय त्यां
क्षमाधर्म क््यांथी होय? माटे प्रथम क्रोध अने उपयोगनुं भेदज्ञान करी, ज्ञानमात्र
उपयोगस्वरूप हुं छुं–एवी अनुभूति करीने धर्मीजीवे वीतरागी चारित्ररूप क्षमाधर्मनी
भावना–उपासना करवा योग्य छे. सम्यग्दर्शन थयुं त्यां अनंतानुबंधी क्रोधनो तो
अभाव थयो ने वीतरागी क्षमाना एक अंशनो स्वाद चाख्यो. आवा
सम्यग्दर्शनपूर्वकनी वीतरागीक्षमा ते उत्तम क्षमा छे. अहो, मुनिवरो तो क्षमानी मूर्ति
छे...एमनी चारित्रदशानी शी वात! अत्यंत भक्तिपूर्वक तेने ओळखीने तेनी भावना
भाववी...ते पर्युषण छे.
[आजे पर्युषणपर्वना मंगल प्रारंभ निमित्ते भगवान जिनेन्द्रनी भव्य
रथयात्रा नीकळी हती; रथयात्रा बाद परमागम–मंदिरमां वीरनाथ–महादेव समक्ष
भक्तिभीनुं पूजन थयुं हतुं. दशलक्षण पूजन विधान (भाईश्री हिंमतलाल
हरगोविंददास भावनगरवाळा