Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : भादरवो : २५०१
३२. राग केवो छे? ४२. संसारनी चारगतिनी रखडपटीथी
थाक््यो होय तेणे शुं करवुं?
राग खरेखर स्वतत्त्व नथी,
मंगळरूप नथी. सम्यग्दर्शन ने आत्मज्ञान.
३३. वीतराग–विज्ञान केवुं छे? ४३. मोक्षसुखने चाहतो होय तेणे शुं
करवुं?
ते स्वतत्त्व छे, मंगळरूप छे,
जगतमां साररूप छे. सम्यग्दर्शन ने आत्मज्ञान.
३४. मिथ्यात्वसहितनुं शुभआचरण
होय तो ते केवुं छे? ४४. सम्यग्दर्शन ने ज्ञाननी प्राप्ति क््यांथी थाय?
ते मिथ्याआचरण छे, संसारनुं
कारण छे. पोतामांथी थाय छे, बीजा पासेथी थती नथी.
३५. ते शुभरागथी जीवने सुख तो मळे ने? ४५. देव–गुरु–शास्त्र शुं कहे छे?
ना; रागथी किंचित पण सुख मळे
नहि, दुःख मळे. तुं अमारी सामे न जो; तारी सामे जो. ’
४६. सम्यग्दर्शननी साथे शुं होय छे? ३६. मोक्षनुं पहेलुं पगथियुं कयुं छे?
सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान.
अनंतानुबंधीना अभावरूप
चारित्रनो अंश होय छे.
३७. तेने क्यारे धारण करवा? ४७. जीवने सम्यग्दर्शन थतां शुं थयुं?
शीघ्र अत्यारे हमणां ज! ते मोक्षना मार्गमां चालवा
मांडयो.
३८. जीव अनादिथी शुं करी रह्यो छे? ४८. सम्यग्दर्शन साथे मुनिदशा होय–
एवो नियम छे?
अज्ञानथी संसारदुःख ज भोगवी
रह्यो छे. ना: भजनीय छे. होय के न पण होय.
३९. ते कदी स्वर्गमां गयो हशे?
हा, अनंतवार गयो छे.
४९. मुनिदशामां सम्यग्दर्शन होय–
एवो नियम छे?
४०. स्वर्गमांय ते सुखी केम न थयो?
त्यां पण सम्यग्दर्शन न कर्युं तेथी.
हा; सम्यग्दर्शन वगर मुनिपद
होय नहि.
४१. जीवने माटे अपूर्व शुं छे?
सम्यग्दर्शननी प्राप्ति.
५०. ज्ञानी पुण्य करीने स्वर्गे जाय तो
ते सुखी छे?