Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : भादरवो : २५०१
ओ बहादूर जैनयुवानो जागो! वहाला वीरपुत्रो, तमे जागो! तमारा आत्माने
अहा, आपणा महावीर भगवानना मोक्षना २५०० वर्षनो एक महान उत्सव
आपणे ऊजवी रह्या छीए. आवो सुंदर जैनधर्म, अने आवा मजानो अवसर–तेमां जो
तमारा जेवा शूरवीर युवानो एम कहेशो के ‘अमने आत्मा न ओळखाय’ –अरे, तो पछी
जगतमां आत्माने ओळखशे कोण? ओ जवांमर्द जवानो! ओ बहादूर वीरांगनाओ!
जगतमां अजोड एवा वीरना मार्गने पामीने तमारे ज आत्माने ओळखवानो छे...ने
आत्माने भवदुःखथी छोडाववानो छे. हे वीरना सुपुत्रो! आ मंगल महोत्सवमां
वीरनाथने श्रद्धांजलि चडावतां द्रढ निश्चय करजो के हे वीरनाथ वहालादेव! अमे तमारा
संतान कांई नमाला के पामर नथी, अमे तो वीर–संतान छीए...वीरतापूर्वक अमेय
आत्माने ओळखीने तमारा मार्गमां आवी रह्या छीए, ने समस्त जैनयुवानो आ ज
मार्गमां आवशे...अमारा माटे आपना सिवाय बीजो कोई मार्ग नथी. प्रभो अमारा जेवा
वीरपुत्रो ज आत्मसाधना वडे आपना मार्गने भरतक्षेत्रमां हजी अढार हजार ने पांचसो
(१८, ५००) वर्ष सुखी अखंड धाराए टकावीशुं. आप मोक्ष पधार्या पछी आजे
अढीहजारवर्षेय आपनुं शासन जीवंत छे, तो अमारा जेवा वीरपुत्रो सिवाय बीजुं कोण छे
के जे आ मार्गमां चालशे! प्रभो! अमे ज आपना वारस छीए, ने अमे आपना मार्गमां
आत्मसाधना करशुं ए अमारी प्रतिज्ञा छे.
‘अमे तो जिनवरना संतान.... जिनवरपंथे विचरशुं’
* जय महावीर *